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Wednesday, June 19, 2013

Question About Modi must Read



तर्क की कसौटी पर मोदी और मोदी विरोधी
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इस लेख के जरिए हम मोदी और मोदी विरोधियों से जुड़े कुछ
महत्वपूर्ण प्रश्नों के उत्तर ढूंढने की कोशिश करेंगे .
1. क्या नरेंद्र मोदी के विरोधी धर्मनिरपेक्ष हैं ?
2. नरेंद्र मोदी पंथनिर्पेक्ष/धर्मनिरपेक्ष हैं कैसे ?
3. क्यों बनाया जा रहा है मोदी को हीं निशाना ?
4. क्या हैं गुजरात चुनावों में नरेंद्र मोदी की हैट्रिक के मायने ?
5. केवल गुजरात दंगों की हीं बात क्यों होती है ?
6. क्या मीडिया का एक खास वर्ग और मोदी के

विरोधी मोदी के विरुद्ध माहौल बनाने की कोशिश कर रहे हैं ?
1. क्या नरेंद्र मोदी के विरोधी पंथनिर्पेक्ष हैं ?
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किसी को पंथनिर्पेक्ष या साम्प्रदायिक मानने से पहले
आपको यह समझना होगा कि धर्मनिर्पेक्षता और
साम्प्रदायिकता किसे कहते हैं. हमें यह
समझना होगा कि किसी पार्टी में शामिल हर
व्यक्ति ना तो साम्प्रदायिक ( कट्टरपंथी ) होता है और
ना किसी पार्टी में शामिल हर व्यक्ति धर्मनिरपेक्ष होता है.
यह कड़वी सच्चाई है कि “धर्मनिर्पेक्षता“ के नाम पर
भारतीयों को बेवकूफ बनाया जाता रहा है.
निर्पेक्षता का अर्थ होता है “निष्पक्षता”, मतलब कोई
व्यक्ति या पार्टी किसी व्यक्ति की जाति या धर्म देखकर
उसे ना कोई खास सुविधा/अधिकार दे और ना उससे कोई
सुविधा/अधिकार छीने. तो हम उस व्यक्ति/
पार्टी को निष्पक्ष मानेंगे. दूसरे धर्म के धार्मिक समारोहों में
शामिल होना या दूसरे धर्म के धार्मिक पहनावे को धारण
करना महज एक दिखावा है, जिसका उपयोग
बड़ी हीं चालाकी से किया जाता रहा है. जिसका उद्देश्य खुद
को निष्पक्ष साबित करना होता है. लेकिन खुद
को धर्मनिर्पेक्ष कहने वाले ये लोग/पार्टियाँ अलग-अलग
धर्मों और जातियों के लिए अलग-अलग योजनाएँ लाते हैं.
मतलब उन जाति/धर्म के लोगों को यह समझाने की कोशिश
की जाती है कि हम आपके धर्म/जाति के हितैषी हैं.
जबकि निष्पक्ष नेता अपने देश/राज्य की पूरी जनता के लिए
कोई योजना लाता है. किसी खास धर्म या जाति के लोगों के
लिए नहीं.
उपर्युक्त उदाहरण के अनुसार आप इस बात को खुद परख
सकते हैं कि मोदी के विरोधियों में कौन निष्पक्ष है और कौन-
कौन निष्पक्षता का ढोंग करता है ?
2. नरेंद्र मोदी पंथनिर्पेक्ष /धर्मनिरपेक्ष हैं कैसे ?
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मोदी ने एक पत्रकार के सवाल का जैसा जवाब दिया, वैसे
जवाब की उम्मीद हम आज की तारीख में किसी नेता से
नहीं कर सकते हैं. एक पत्रकार ने मोदी से सवाल किया,
“आपने अल्पसंख्यकों के लिए क्या किया ?”. मोदी ने जवाब
दिया, “मैंने अल्पसंख्यकों के लिए कुछ नहीं किया, क्योंकि मैं
अल्पसंख्यक या बहुसंख्यक देखकर काम नहीं करता. मैं
गुजरात की जनता के लिए काम करता हूँ”.
2012 के गुजरात चुनावों में मुस्लिमबहुल क्षेत्रों से
भाजपा की जीत इस बात को साबित भी करती है कि गुजरात
में मोदी ने किसी खास धर्म या समुदाय के लिए काम
नहीं किया है. मोदी का विकास सबके लिए था, चाहे वो हिन्दू
हो या मुसलमान.
3. क्यों बनाया जा रहा है मोदी को हीं निशाना ?
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मोदी कुछ खास लोगों के निशाने पर होते हैं, क्योंकि कुछ लोग
इस बात को अच्छी तरह से जानते हैं कि अगर मोदी एक बार
प्रधानमंत्री बन गए तो उन्हें इस पद से
हटाना उतना हीं मुश्किल होगा, जितना आज की तारीख में उन्हें
गुजरात के मुख्यमंत्री के पद से हटाना है. मतलब मोदी के एक
बार प्रधानमंत्री बनने के बाद विभिन्न पार्टियों के उन
सभी नेताओं के प्रधानमंत्री बनने
की महत्वाकांक्षा धरी की धरी रह जाएगी. जो खुद
को प्रधानमंत्री के पद में बैठा हुआ देखना चाहते हैं. और
इसी कारण से वे नेता हर प्रकार से मोदी को प्रधानमंत्री पद
तक कभी पहुँचने हीं नहीं देना चाहते हैं.
4. क्या हैं गुजरात चुनावों में नरेंद्र मोदी की हैट्रिक के मायने ?
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2012 के गुजरात चुनावों में कभी काँग्रेस यह कहती नजर आई
कि गुजरात में विकास हुआ हीं नहीं, तो कभी राहुल गाँधी यह
कहते नजर आए कि गुजरात के विकास का श्रेय मोदी ने ले
लिया जबकि इसका सेहरा आम गुजराती के सिर बंधना चाहिए.
मतलब कांग्रेस गुजरात के विकास
को कभी नकारती तो कभी मानती नजर आई.
केशुभाई पटेल और कट्टर मोदी विरोधियों के विरोध के बावजूद
मोदी ने स्पष्ट बहुमत प्राप्त कर यह साबित कर
दिया कि उनके विकास के काम के कारण जनता ने उन्हें वोट
दिया. अगर आज गुजरात विकास का पर्याय बना हुआ है
तो हम इसका श्रेय मोदी को देने के लिए मजबूर हैं.
सरप्लस बिजली, राजनीतिक स्थिरता, श्रमिकों की शांति,
बढ़िया प्रसाशन आदि कई ऐसे कारण हैं जिनके कारण बड़े-बड़े
औद्योगिक इकाइयों ने गुजरात में कदम रखना बेहतर समझा.
नैनो, फोर्ड की नई इकाई, मारुति सुजुकी, बाइक
कम्पनी हीरो मोटर्स, जनरल मोटर्स, फ्युजो नेस्ले,
हिताची जैसी औद्योगिक इकाइयों ने गुजरात में निवेश किया.
इन निवेशों का असर ये हुआ कि गुजरात ने विकास के नए
आयाम छुए और गुजरातियों को नए रोजगार आसानी से प्राप्त
हुए. पिछले एक दशक में गुजरात का विकास दर औसतन 10.5
रहा, जबकि इसी दौरान भारत का औसतन विकास दर 7.9
रहा.
5. केवल गुजरात दंगों की बात होती है ?
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2002 के गुजरात दंगों के नाम पर आज भी मोदी को खलनायक
साबित करने की कोशिश की जाती है. लेकिन 2012 के असम
दंगों के लिए ना तो असम के मुख्यमंत्री को कटघरे में
खड़ा किया जाता है और ना घुसपैठियों को रोकने में असक्षम
होने की बात पर कभी मनमोहन सिंह को दोषी ठहराया जाता है.
और ना हीं किसी और दंगे के लिए
दोषी किसी नेता को कभी कटघरे में खड़ा करने की कोशिश
की जाती है.
6. क्या मीडिया का एक खास वर्ग और मोदी के
विरोधी मोदी के विरुद्ध माहौल बनाने की कोशिश कर रहे हैं ?
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इसका जवाब है, हाँ. क्योंकि मोदी के साथ खड़े होने वाले
व्यक्ति को सीधे साम्प्रदायिक साबित करने की कोशिश होने
लगती है. मोदी के समर्थन का मतलब है, खुद
को साम्प्रदायिक लोगों की सूची में शामिल कर लेना . और
विरोध करने का मतलब है, खुद को धर्मनिरपेक्ष साबित कर
देना.
7. क्या प्रधानमंत्री बनने के योग्य हैं मोदी ?
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आज जब मनमोहन सिंह को एक कमजोर
प्रधानमंत्री कहा जाता है, तो हमें इस बात से इंकार
नहीं करना चाहिए कि हर गठबंधन सरकार का मुखिया मजबूर
होता है. और आज की तारीख में केन्द में गठबंधन सरकार के
अलावा कोई विकल्प नजर नहीं आता है. ऐसे में मोदी एक
मजबूत नेता के रूप में नजर आते हैं, जो किसी के आगे मजबूर
नहीं होता है. जो अपने विरोधियों से निपटान अच्छी तरह
जनता है. मोदी उन अधूरे कामों को करने में सक्षम नजर आते
हैं, जिन्हें आजादी के बाद से आजतक विभिन्न पार्टियों के कई
बड़े नेता नहीं कर पाए हैं.
सरदार पटेल जैसे कद्दावर नेता की छवि आज केवल मोदी में
हीं नजर आती है. सरदार पटेल ने 563 देशी रियासतों को भारत
में शामिल किया था जबकि उनके बाद आजतक कोई
ऐसा नेता भी नहीं हुआ, जिसने आजादी के 60 से
भी ज्यादा वर्ष बीत जाने के बावजूद कश्मीर
समस्या का भी हल निकाल पाया हो. और जिसका नतीजा है
कि भारत को अपने सैनिकों की कुर्बानी आज भी देनी पड़ती है.
और आज भी कश्मीर समस्या भारत के लिए सिरदर्द बना हुआ
है. अगर इस मुद्दे को कोई हल कर सकता है तो वो कोई
मजबूत नेता हीं, और गठबंधन के इस दौर में मोदी के
अलावा किसी अन्य नेता में एक मजबूत नेता की छवि नजर
नहीं आती है. दूसरे नेताओं में केवल मजबूर
प्रधानमंत्री की छवि नजर आती है.
आजादी के इतने वर्ष बीतने के बावजूद आजतक भारत
की सीमाएँ सील नहीं की गई है. जिस कारण घुसपैठिए भारत में
आसानी से आते हैं और यहाँ के सुरक्षा में सेंध लगाते रहते हैं.
मोदी इस काम को भी करने में पूरी तरह सक्षम नजर आते हैं.
मोदी इसी तरह के मजबूत और बड़े फैसले लेने में सक्षम नजर
आते हैं. जो शायद कोई और नेता नहीं ले सकता है.

iamhinduism

Puranas - पुराण



पुराण, हिंदुओं के धर्मसंबंधी आख्यानग्रंथ हैं जिनमें सृष्टि, लय,
प्राचीन ऋषियों, मुनियों और राजाओं के वृत्तात आदि हैं। ये
वैदिक काल के काफ़ी बाद के ग्रन्थ हैं, जो स्मृति विभाग में आते
हैं। भारतीय जीवन-धारा में जिन ग्रन्थों का महत्वपूर्ण स्थान
है उनमें पुराण भक्ति-ग्रंथों के रूप में बहुत महत्वपूर्ण माने जाते
हैं। अठारह पुराणों में अलग-अलग देवी-देवताओं को केन्द्र
मानकर पाप और पुण्य, धर्म और अधर्म, कर्म, और अकर्म
की गाथाएँ कही गई हैं। कुछ पुराणों में सृष्टि के आरम्भ से अन्त
तक का विवरण किया गया है। इनमें हिन्दू देवी-देवताओं का और
पौराणिक मिथकों का बहुत अच्छा वर्णन है ।

कर्मकांड (वेद) से ज्ञान (उपनिषद्) की ओर आते हुए भारतीय
मानस में पुराणों के माध्यम से भक्ति की अविरल धारा प्रवाहित
हुई है। विकास की इसी प्रक्रिया में बहुदेववाद और निर्गुण
ब्रह्म की स्वरूपात्मक व्याख्या से धीरे-धीरे मानस अवतारवाद
या सगुण भक्ति की ओर प्रेरित हुआ।
पुराणों में वैदिक काल से चले आते हुए
सृष्टि आदि संबंधी विचारों, प्राचीन राजाओं और ऋषियों के
परंपरागत वृत्तांतों तथा कहानियों आदि के संग्रह के साथ साथ
कल्पित कथाओं की विचित्रता और रोचक
वर्णनों द्वारा सांप्रदायिक या साधारण उपदेश भी मिलते हैं ।
पुराण उस प्रकार प्रमाण ग्रंथ नहीं हैं जिस प्रकार श्रुति,
स्मृति आदि हैं।
पुराणों में विष्णु, वायु, मत्स्य और भागवत में ऐतिहासिक वृत्त
— राजाओं की वंशावली आदि के रूप में बहुत कुछ मिलते हैं । ये
वंशावलियाँ यद्यपि बहुत संक्षिप्त हैं और इनमें परस्पर
कहीं कहीं विरोध भी हैं पर हैं बडे़ काम की । पुराणों की ओर
ऐतिहासिकों ने इधर विशेष रूप से ध्यान दिया है और वे इन
वंशावलियों की छानबीन में लगे हैं ।
शाब्दिक अर्थ एवं महिमा
पुराण का शाब्दिक अर्थ - 'प्राचीन आख्यान' या 'पुरानी कथा'
होता है। ‘पुरा’ शब्द का अर्थ है - अनागत एवं अतीत। ‘अण’
शब्द का अर्थ होता है -कहना या बतलाना। रघुवंश में पुराण
शब्द का अर्थ है "पुराण पत्रापग मागन्नतरम्" एवं वैदिक
वाग्ङय में "प्राचीन: वृत्तान्त:" दिया गया है। सांस्कृतिक
अर्थ से हिन्दू संस्कृति के वे विशिष्ट धर्मग्रंथ जिनमें सृष्टि से
लेकर प्रलय तक का इतिहास-वर्णन शब्दों से किया गया हो,
पुराण कहे जाते है पुराण शब्द का उल्लेख वैदिक युग के वेद
सहित आदितम साहित्य में भी पाया जाता है अत: ये सबसे
पुरातन (पुराण) माने जा सकते हैं। अथर्ववेद के अनुसार "ऋच:
सामानि छन्दांसि पुराणं यजुषा सह ११.७.२") अर्थात्
पुराणों का आविर्भाव ऋक्, साम, यजुस् औद छन्द के साथ
ही हुआ था। शतपथ ब्राह्मण (१४.३.३.१३) में
तो पुराणवाग्ङमय को वेद ही कहा गया है। छान्दोग्य उपनिषद्
(इतिहास पुराणं पञ्चम वेदानांवेदम् ७.१.२) ने भी पुराण को वेद
कहा है। बृहदारण्यकोपनिषद् तथा महाभारत में कहा गया है
कि "इतिहास पुराणाभ्यां वेदार्थ मुपर्बंहयेत्" अर्थात् वेद
का अर्थविस्तार पुराण के द्वारा करना चाहिये। इनसे यह
स्पष्ट है कि वैदिक काल में पुराण तथा इतिहास को समान स्तर
पर रखा गया है। अमरकोष आदि प्राचीन कोशों में पुराण के सर्ग
(सृष्टि), प्रतिसर्ग (प्रलय, पुनर्जन्म), वंश (देवता व
ऋषि सूचियां), मन्वन्तर (चौदह मनु के काल), और वंशानुचरित
(सूर्य चंद्रादि वंशीय चरित) - ये पांच लक्षण माने गये हैं।
सर्गश्च प्रतिसर्गश्च वंशो मन्वंतराणि च। वंश्यानुचरितं
चैव पुराणं पंचलक्षणम्।
(१) सर्ग – पंचमहाभूत, इंद्रियगण,
बुद्धि आदि तत्त्वों की उत्पत्ति का वर्णन,
(२) प्रतिसर्ग – ब्रह्मादिस्थावरांत संपूर्ण चराचर जगत् के
निर्माण का वर्णन,
(३) वंश – सूर्यचंद्रादि वंशों का वर्णन,
(४) मन्वंतर – मनु, मनुपुत्र, देव, सप्तर्षि, इंद्र और भगवान् के
अवतारों का वर्णन,
(५) वंश्यानुचरित – प्रति वंश के प्रसिद्ध पुरुषों का वर्णन.
माना जाता है कि सृष्टि के रचनाकर्ता ब्रह्माजी ने सर्वप्रथम
जिस प्राचीनतम धर्मग्रंथ की रचना की, उसे पुराण के नाम से
जाना जाता है।
विषयवस्तु
प्राचीनकाल से पुराण देवताओं, ऋषियों, मनुष्यों -
सभी का मार्गदर्शन करते रहे हैं।पुराण मनुष्य को धर्म एवं
नीति के अनुसार जीवन व्यतीत करने की शिक्षा देते हैं । पुराण
मनुष्य के कर्मों का विश्लेषण कर उन्हें दुष्कर्म करने से रोकते
हैं। पुराण वस्तुतः वेदों का विस्तार हैं । वेद बहुत ही जटिल
तथा शुष्क भाषा-शैली में लिखे गए हैं। वेदव्यास जी ने
पुराणों की रचना और पुनर्रचना की। कहा जाता है, ‘‘पूर्णात
पुराण ’’ जिसका अर्थ है, जो वेदों का पूरक हो, अर्थात् पुराण
( जो वेदों की टीका हैं )। वेदों की जटिल भाषा में कही गई
बातों को पुराणों में सरल भाषा में समझाया गया हैं। पुराण-
साहित्य में अवतारवाद को प्रतिष्ठित किया गया है। निर्गुण
निराकार की सत्ता को मानते हुए सगुण साकार
की उपासना करना इन ग्रंथों का विषय है। पुराणों में अलग-
अलग देवी-देवताओं को केन्द्र में रखकर पाप-पुण्य, धर्म-
अधर्म और कर्म-अकर्म की कहानियाँ हैं। प्रेम, भक्ति, त्याग,
सेवा, सहनशीलता ऐसे मानवीय गुण हैं, जिनके अभाव में उन्नत
समाज की कल्पना नहीं की जा सकती। पुराणों में देवी-देवताओं
के अनेक स्वरूपों को लेकर एक विस्तृत विवरण मिलता है।
पुराणों में सत्य को प्रतिष्ठित में दुष्कर्म का विस्तृत चित्रण
पुराणकारों ने किया है। पुराणकारों ने देवताओं
की दुष्प्रवृत्तियों का व्यापक विवरण किया है लेकिन मूल
उद्देश्य सद्भावना का विकास और सत्य की प्रतिष्ठा ह
अट्ठारह पुराण
पुराण अठारह हैं । विष्णु पुराण के अनुसार उनके नाम ये हैं—
विष्णु, पद्य, ब्रह्म, शिव, भागवत, नारद, मार्कंडेय, अग्नि,
ब्रह्मवैवर्त, लिंग, वाराह, स्कंद, वामन, कूर्म, मत्स्य, गरुड,
ब्रह्मांड और भविष्य ।
1. ब्रह्म पुराण
2. पद्म पुराण
3. विष्णु पुराण
4. शिव पुराण -- ( वायु पुराण )
5. भागवत पुराण -- ( देवीभागवत पुराण )
6. नारद पुराण
7. मार्कण्डेय पुराण
8. अग्नि पुराण
9. भविष्य पुराण
10. ब्रह्म वैवर्त पुराण
11. लिङ्ग पुराण
12. वाराह पुराण
13. स्कन्द पुराण
14. वामन पुराण
15. कूर्म पुराण
16. मत्स्य पुराण
17. गरुड़ पुराण
18. ब्रह्माण्ड पुराण
पुराणों में एक विचित्रता यह है कि प्रत्येक पुराण में
अठारहो पुराणों के नाम और उनकीश्लोकसंख्या है । नाम और
श्लोकसंख्या प्रायः सबकी मिलती है, कहीं कहीं भेद है । जैसे
कूर्म पुराण में अग्नि के स्थान में वायुपुराण; मार्कंडेय पुराण में
लिंगपुराण के स्थान में नृसिंहपुराण; देवीभागवत में शिव पुराण के
स्थान में नारद पुराण और मत्स्य में वायुपुराण है । भागवत के
नाम से आजकल दो पुराण मिलते हैं—एक श्रीमदभागवत,
दूसरा देवीभागवत । कौन वास्तव में पुराण है इसपर
झगड़ा रहा है । रामाश्रम स्वामी ने 'दुर्जनमुखचपेटिका' में
सिद्ध किया है कि श्रीमदभागवत ही पुराण है । इसपर काशीनाथ
भट्ट ने 'दुर्जनमुखमहाचपेटिका' तथा एक और पंडित ने
'दुर्जनमुखपद्यपादुका' देवीभागवत के पक्ष में लिखी थी
उपपुराण
1. गणेश पुराण
2. नरसिंह पुराण
3. कल्कि पुराण
4. एकाम्र पुराण
5. कपिल पुराण
6. दत्त पुराण
7. श्रीविष्णुधर्मौत्तर पुराण
8. मुद्गगल पुराण
9. सनत्कुमार पुराण
10. शिवधर्म पुराण
11. आचार्य पुराण
12. मानव पुराण
13. उश्ना पुराण
14. वरुण पुराण
15. कालिका पुराण
16. महेश्वर पुराण
17. साम्ब पुराण
18. सौर पुराण
19. पराशर पुराण
20. मरीच पुराण
21. भार्गव पुराण
अन्यपुराण तथा ग्रन्थ
1. हरिवंश पुराण
2. सौरपुराण
3. महाभारत
4. श्रीरामचरितमानस
5. रामायण
6. श्रीमद्भगवद्गीता
7. गर्ग संहिता
8. योगवासिष्ठ
9. प्रज्ञा पुराण
श्लोक संख्या
सुखसागर के अनुसारः
1. ब्रह्मपुराण में श्लोकों की संख्या १४००० और २४६
अद्धयाय है|
2. पद्मपुराण में श्लोकों की संख्या ५५००० हैं।
3. विष्णुपुराण में श्लोकों की संख्या तेइस हजार हैं।
4. शिवपुराण में श्लोकों की संख्या चौबीस हजार हैं।
5. श्रीमद्भावतपुराण में श्लोकों की संख्या अठारह हजार
हैं।
6. नारदपुराण में श्लोकों की संख्या पच्चीस हजार हैं।
7. मार्कण्डेयपुराण में श्लोकों की संख्या नौ हजार हैं।
8. अग्निपुराण में श्लोकों की संख्या पन्द्रह हजार हैं।
9. भविष्यपुराण में श्लोकों की संख्या चौदह हजार पाँच
सौ हैं।
10. ब्रह्मवैवर्तपुराण में श्लोकों की संख्या अठारह हजार
हैं।
11. लिंगपुराण में श्लोकों की संख्या ग्यारह हजार हैं।
12. वाराहपुराण में श्लोकों की संख्या चौबीस हजार हैं।
13. स्कन्धपुराण में श्लोकों की संख्या इक्यासी हजार एक
सौ हैं।
14. वामनपुराण में श्लोकों की संख्या दस हजार हैं।
15. कूर्मपुराण में श्लोकों की संख्या सत्रह हजार हैं।
16. मत्सयपुराण में श्लोकों की संख्या चौदह हजार हैं।
17. गरुड़पुराण में श्लोकों की संख्या उन्नीस हजार हैं।
18. ब्रह्माण्डपुराण में श्लोकों की संख्या बारह हजार हैं।
प्रमुख पुराणों का परिचय
पुराणों में सबसे पुराना विष्णुपुराण ही प्रतीत होता है । उसमें
सांप्रदायिक खींचतान और रागद्वेष नहीं है । पुराण के
पाँचो लक्षण भी उसपर ठीक ठीक घटते हैं । उसमें
सृष्टि की उत्पत्ति और लय, मन्वंतरों, भरतादि खंडों और
सूर्यादि लोकों, वेदों की शाखाओं तथा वेदव्यास द्वारा उनके
विभाग, सूर्य वंश, चंद्र वंश आदि का वर्णन है । कलि के
राजाओं में मगध के मौर्य राजाओं तथा गुप्तवंश के राजाओं तक
का उल्लेख है । श्रीकृष्ण की लीलाओं का भी वर्णन है पर
बिलकुल उस रूप में नहीं जिस रूप में भागवत में है ।
कुछ लोगों का कहना है कि वायुपुराण ही शिवपुराण है
क्योंकि आजकल जो शिवपुराण नामक पुराण या उपपुराण है
उसकी श्लोक संख्या २४,००० नहीं है, केवल ७,००० ही है ।
वायुपुराण के चार पाद है जिनमें सृष्टि की उत्पत्ति, कल्पों ओर
मन्वंतरों, वैदिक ऋषियों की गाथाओं, दक्ष
प्रजापति की कन्याओं से भिन्न भिन्न जीवोत्पति,
सूर्यवंशी और चंद्रवंशी राजाओं की वंशावली तथा कलि के
राजाओं का प्रायः विष्णुपुराण के अनुसार वर्णन है ।
मत्स्यपुराण में मन्वंतरों और राजवंशावलियों के अतिरिक्त
वर्णश्रम धर्म का बडे़ विस्तार के साथ वर्णन है और
मत्सायवतार की पूरी कथा है । इसमें मय आदिक असुरों के
संहार, मातृलोक, पितृलोक, मूर्ति और मंदिर बनाने
की विधि का वर्णन विशेष ढंग का है ।
श्रीमदभागवत का प्रचार सबसे अधिक है क्योंकि उसमें
भक्ति के माहात्म्य और श्रीकृष्ण की लीलाओं का विस्तृत
वर्णन है । नौ स्कंधों के भीतर तो जीवब्रह्म की एकता,
भक्ति का महत्व, सृष्टिलीला, कपिलदेव का जन्म और
अपनी माता के प्रति वैष्णव भावानुसार सांख्यशास्त्र
का उपदेश, मन्वंतर और ऋषिवंशावली, अवतार जिसमें ऋषभदेव
का भी प्रसंग है, ध्रुव, वेणु, पृथु, प्रह्लाद इत्यादि की कथा,
समुद्रमथन आदि अनेक विषय हैं । पर सबसे बड़ा दशम स्कंध है
जिसमें कृष्ण की लीला का विस्तार से वर्णन है । इसी स्कंध के
आधार पर शृंगार और भक्तिरस से पूर्ण कृष्णचरित्
संबंधी संस्कृत और भाषा के अनेक ग्रंथ बने हैं । एकादश स्कंध
में यादवों के नाश और बारहवें में कलियुग के राचाओं के राजत्व
का वर्णन है । भागवत की लेखनशैली और पुराणों से भिन्न है ।
इसकी भाषा पांडित्यपूर्ण और साहित्य संबंधी चमत्कारों से
भरी हुई है, इससे इसकी रचना कुछ पीछे की मानी जाती है ।
अग्निपुराण एक विलक्षण पुराण है जिसमें
राजवंशावलियों तथा संक्षिप्त कथाओं के अतिरिक्त
धर्मशास्त्र, राजनीति, राज- धर्म, प्रजाधर्म, आयुर्वेद,
व्याकरण, रस, अलंकार, शस्त्र- विद्या आदि अनेक विषय हैं ।
इसमें तंत्रदीक्षा का भी विस्तृत प्रकरण है । कलि के राजाओं
की वंशावली विक्रम तक आई है, अवतार प्रसंग भी है ।
इसी प्रकार और पुराणों में भी कथाएँ हैं ।
विष्णुपुराण के अतिरिक्त और पुराण जो आजकल मिलते हैं उनके
विषय में संदेह होता है कि वे असल पुराणों के न मिलने पर पीछे
से न बनाए गए हों । कई एक पुराण तो मत मतांतरों और
संप्रदायों के राग द्वेष से भरे हैं । कोई
किसी देवता की प्रधानता स्थापित करता है, कोई
किसी देवता की प्रधानता स्थापित करता है, कोई किसी की ।
ब्रह्मवैवर्त पुराण का जो परिचय मत्स्यपुराण में दिया गया है
उसके अनुसार उसमें रथंतर कल्प और वराह अवतार
की कथा होनी चाहिए पर जो ब्रह्मवैवर्त आजकल मिलता है
उसमें यह कथा नहीं है । कृष्ण के वृंदावन के रास से जिन
भक्तों की तृप्ति नहीं हुई थी उनके लिये गोलोक में सदा होनेवाले
रास का उसमें वर्णन है । आजकल का यह ब्रह्मवैवर्त
मुसलमानों के आने के कई सौ वर्ष पीछे का है क्योंकि इसमें
'जुलाहा' जाति की उत्पत्ति का भी उल्लेख है—'म्लेच्छात्
कुविंदकन्यायां' जोला जातिर्बभूव ह' (१०, १२१) । ब्रह्मपुराण
में तीर्थों और उनके माहात्म्य का वर्णन बहुत अदिक हैं, अनंत
वासुदेव और पुरुषोत्तम (जगन्नाथ) माहात्म्य तथा और बहुत
से ऐसे तीर्थों के माहात्म्य लिखे गए हैं जो प्राचीन नहीं कहे
जा सकते । 'पुरुषोत्तमप्रासाद' से अवश्य जगन्नाथ जी के
विशाल मंदिर की ओर ही इशारा है जिसे गांगेय वंश के
रिजा चोड़गंगा (सन् १०७७ ई०) ने बनवाया था । मत्स्यपुराण में
दिए हुए लक्षण आजकल के पद्मपुराण में भी पूरे नहीं मिलते हैं ।
वैष्णव सांप्रदायिकों के द्वेष की इसमें बहुत सी बातें हैं । जैसे,
पाषडिलक्षण, मायावादनिंदा, तामसशास्त्र,
पुराणवर्णनइत्यादि । वैशेषिक, न्याय, सांख्य और चार्वाक
तामस शास्त्र कहे गए हैं और यह भी बताया गया है
कि दैत्यों के विनाश के लिये बुद्ध रूपी विष्णु ने असत् बौद्ध
शास्त्र कहा । इसी प्रकार मत्स्य, कूर्म, लिंग, शिव, स्कंद
और अग्नि तामस पुराण कहे गए हैं । सारंश यह कि अधिकांश
पुराणों का वर्तमान रूप हजार वर्ष के भीतर का है । सबके सब
पुराण सांप्रदायिक है, इसमें भी कोई संदेह नहीं है । कई पुराण
(जैसे, विष्णु) बहुत कुछ अपने प्राचीन रूप में मिलते हैं पर उनमें
भी सांप्रदायिकों ने बहुत सी बातें बढ़ा दी hai.
पुराणों का काल एवं रचयिता
यद्यपि आजकल जो पुराण मिलते हैं उनमें से अधिकतर पीछे से
बने हुए या प्रक्षिप्त विषयों से भरे हुए हैं तथापि पुराण बहुत
प्राचीन काल से प्रचलित थे । बृहदारण्यक और शतपथ
ब्राह्मण में लिखा है कि गीली लकड़ी से जैसे धुआँ अलग अलग
निकलता है बैसे ही महान् भूत के निःश्वास से ऋग्वेद, यजुर्वेद
सामवेद, अथर्वांगिरस, इतिहास, पुराणविद्या, उपनिषद,
श्लोक, सूत्र, व्याख्यान और अनुव्याख्यान हुए । छांदोग्य
उपनिषद् में भी लिखा है कि इतिहास पुराण वेदों में पाँचवाँ वेद है
। अत्यंत प्राचीन काल में वेदों के साथ पुराण भी प्रचलित थे
जो यज्ञ आदि के अवसरों पर कहे जाते थे । कई बातें जो पुराण
केलक्षणों में हैं, वेदों में भी हैं । जैसे, पहले असत् था और कुछ
नहीं था यह सर्ग या सृष्टितत्व है; देवासुर संग्राम,
उर्वशी पुरूरवा संवाद इतिहास है । महाभारत के आदि पर्व में (१
। २३३) भी अनेक राजाओं के नाम और कुछ विषय गिनाकर
कहा गया है कि इनके वृत्तांत विद्वान सत्कवियों द्वारा पुराण
में कहे गए हैं । इससे कहा जा सकता है कि महाभारत के
रचनाकाल में भी पुराण थे । मनुस्मृति में भी लिखा है
कि पितृकार्यों में वेद, धर्मशास्त्र, इतिहास, पुराण आदि सुनाने
चाहिए ।
अब प्रश्न यह होता है कि पुराण हैं किसके बनाए । शिवपुराण के
अंतर्गत रेवा माहात्म्य में लिखा है कि अठारहों पुराणों के
वक्ता मत्यवतीसुत व्यास हैं । यही बात जन साधारण में
प्रचलित है । पर मत्स्यपुराण में स्पष्ट लिखा है कि पहले पुराण
एक ही था, उसी से १८ पुराण हुए (५३ । ४) । ब्राह्मांड पुराण में
लिखा है कि वेदव्यास ने एक पुराणसंहिता का संकलन
किया था । इसके आगे की बात का पता विष्णु पुराण से
लगता है । उसमें लिखा है कि व्यास का एक लोमहर्षण नाम
का शिष्य था जो सूति जाति का था । व्यास जी ने अपनी पुराण
संहिता उसी के हाथ में दी । लोमहर्षण के छह शिष्य थे—
सुमति, अग्निवर्चा, मित्रयु, शांशपायन, अकृतव्रण और
सावर्णी । इनमें से अकृत- व्रण, सावर्णी और शांशपायन ने
लोमहर्षण से पढ़ी हुई पुराणसंहिता के आधार पर और एक एक
संहिता बनाई । वेदव्यास ने जिस प्रकार मंत्रों का संग्रहकर उन
का संहिताओं में विभाग किया उसी प्रकार पुराण के नाम से चले
आते हुए वृत्तों का संग्रह कर पुराणसंहिता का संकलन किया ।
उसी एक संहिता को लेकर सुत के चेलों के तीन और संहीताएँ
बनाई । इन्हीं संहिताओं के आधार पर अठारह पुराण बने होंगे ।
मत्स्य, विष्णु, ब्रह्मांड आदि सब पुराणों में ब्रह्मपुराण
पहला कहा गया है । पर जो ब्रह्मपुराण आजकल प्रचलित है वह
कैसा है यह पहले कहा जा चुका है । जो कुछ हो, यह तो ऊपर
लिखे प्रमाण से सिद्ध है कि अठारह पुराण वेदव्यास के बनाए
नहीं हैं । जो पुराण आजकल मिलते हैं उनमें विष्णुपुराण और
ब्रह्मांडपुराण की रचना औरों से प्राचीन जान पड़ती है ।
विष्णुपुराण में 'भविष्य राजवंश' के अंतर्गत गुप्तवंश के राजाओं
तक का उल्लेख है इससे वह प्रकरण ईसा की छठी शताब्दी के
पहले का नहीं हो सकता । जावा के आगे जो बाली टापू है वहाँ के
हिंदुओं के पास ब्रह्मांडपुराण मिला है । इन हिंदुओं के पूर्वज
ईसा की पाँचवी शताब्दी में भारतवर्ष में पूर्व के द्वीपों में जाकर
बसे थे । बालीवाले ब्रह्मा़डपुराण में 'भविष्य राजवंश प्रकरण'
नहीं है उसमें जनमेजय के प्रपौत्र अधिसीमकृष्ण तक का नाम
पाया जाता है । यह बात ध्यान देने की है । इससे प्रकट होता है
कि पुराणों में जो भविष्य राजवंश है वह पीछे से जोड़ा हुआ है ।
यहाँ पर ब्रह्मांडपुराण की जो प्राचीन प्रतियाँ मिलती हैं
देखना चाहिए कि उनमें भूत और वर्तमानकालिक
क्रिया का प्रयोग कहाँ तक है । 'भविष्यराजवंश वर्णन' के पूर्व
उनमें ये श्लोक मिलते हैं— तस्य पुत्रः शतानीको बलबान्
सत्यविक्रमः । ततः सुर्त शतानीकं विप्रास्तमभ्यषेचयन् । ।
पुत्रोश्वमेधदत्तो/?/भूत् शतानीकस्य वीर्यवान् । पुत्रो/?/
श्वमेधदत्ताद्वै जातः परपुरजयः । ।
अधिसीमकृष्णो धर्मात्मा साम्पतोयं महायशाः । यस्मिन्
प्रशासति महीं युष्माभिरिदमाहृतम् । । दुरापं दीर्घसत्रं वै
त्रीणि दर्षाणि पुष्करम् वर्षद्वयं कुरुक्षेत्रे
दृषद्वत्यां द्विजोत्तमाः । । अर्थात्— उनके पुत्र बलवान् और
सत्यविक्रम शतानीक हुए । पीछे शतानीक के पुत्र
को ब्राह्मणों ने अभिषिक्त किया । शतानीक के अश्वमेधदत्त
नाम का एक वीर्यवान् पुत्र उत्पन्न हुआ । अश्वमेधदत्त के
पुत्र परपुरंजय धर्मात्मा अधिसीमकृष्ण हैं । ये
ही महायशा आजकल पृथ्वी का शासन करते हैं । इन्हीं के समय
में आप लोगों ने पुष्कर में तीन वर्ष का और दृषद्वती के किनारे
कुरुक्षेत्र में दो वर्ष तक का यज्ञ किया है । उक्त अंश से
प्रकट है कि आदि ब्रह्मांडपुराण अधिसीमकृष्ण के समय में
बना । इसी प्रकार विष्णुपुराण, मत्स्यपुराण
आदि की परीक्षा करने से पता चलता है कि आदि विष्णुपुराण
परीक्षित के समय में और आदि मत्स्यपुराण जनमेजय के
प्रपौत्र अधिसीमकृष्ण के समय में संकलित हुआ ।
पुराण संहिताओं से अठारह पुराण बहुत प्राचीन काल में ही बन
गए थे इसका पता लगता है । आपस्तंबधर्मसूत्र(२ । २४ । ५)
में भविष्यपुराण का प्रमाण इस प्रकार उदधृत है— आभूत
संप्लवात्ते स्वर्गजितः । पुनः सर्गे
बीजीर्था भवतीति भविष्यत्पुराणे । यह अवश्य है कि आजकल
पुराण अपने आदिम रूप में नहीं मिलते हैं । बहुत से पुराण
तो असल पुराणों के न मिलने पर फिर से नए रचे गए हैं, कुछ में
बहुत सी बातें जोड़ दी गई हैं । प्रायः सब पुराण शैव, वैष्णव
और सौर संप्रदायों में से किसी न किसी के पोषक हैं, इसमें
भी कोई संदेह नहीं । विष्णु, रुद्र, सूर्य आदि की उपासना वैदिक
काल से ही चली आती थी, फिर धीरे धीरे कुछ लोग किसी एक
देवता को प्रधानता देने लगे, कुछ लोग दूसरे को । इस प्रकार
महाभारत के पीछे ही संप्रदायों का सूत्रपात हो चला ।
पुराणसंहिताएँ उसी समय में बनीं । फिर आगे चलकर आदिपुराण
बने जिनका बहुत कुछ अंश आजकल पाए जानेवाले कुछ पुराणों के
भीतर है । पुराणों का उद्देश्य पुराने वृत्तों का संग्रह करना, कुछ
प्राचीन और कुछ कल्पित कथाओं द्वारा उपदेश देना,
देवमहिमा तथा तीर्थमहिमा के वर्णन द्वारा जनसाधारण में
धर्मबुदिध स्थिर रखना दी था । इसी से व्यास ने सूत (भाट
या कथक्केड़) जाति के एक पुरुष को अपनी संकलित
आदिपुराणसंहिता प्रचार करने के लिये दी।
जैन एवं बौद्ध पुराण
हिंदुओं के अनुकरण पर जैन लोगों में भी बहुत से पुराण बने हैं ।
इनमें से २४ पुराण तो तीर्थकरों के नाम पर हैं; और भी बहुत से हैं
जिनमें तीर्थकरों के अलौकिक चरित्र, सब देवताओं से
उनकी श्रेष्ठता, जैनधर्म संबंधी तत्वों का विस्तार से वर्णन,
फलस्तुति, माहात्म्य आदि हैं । अलग पद्मपुराण और हरिवंश
(अरिष्टनेमि पुराण) भी हैं । इन जैन पुराणों में राम, कृष्ण
आदि के चरित्र लेकर खूब विकृत किए गए हैं । बौद्ध ग्रंथों में
कहीं पुराणों का उल्लेख नहीं है पर तिब्बत और नेपाल के बौद्ध ९
पुराण मानते हैं जिन्हें वे नवधर्म कहते हैं —
(१) प्रज्ञापारमिता (न्याय का ग्रंथ कहना चाहिए),
(२) गंडव्यूह,
(३) समाधिराज,
(४) लंकावतार (रावण का मलयागिरि पर जाना, और
शाक्यसिंह के उपदेश से बोधिज्ञान लाभ करना वर्णित है),
(५) तथागतगुह्यक,
(६) सद्धर्मपुंडरीक,
(७) ललितविस्तर (बुद्ध का चरित्र),
(८) सुवर्णप्रभा (लक्ष्मी, सरस्वती,
पृथ्वी आदि की कथा और उनका शाक्यसिंह का पूजन)
(९) दशभूमीश्वर

Source : Sukh-Sagar Saujanya
At bloged : Iamhinduism

If Modi Win In 2014..?? 2014 में मोदीजी की जीत होती है तो..



2014 में मोदीजी की जीत होती है तो...........
ब्रेकिंग न्यूज़ - सीबीआई ने गिरफ्तार किये सभी केंद्रीय मंत्री,
दिग्विजय सिह को हवाई अड्डे पर पाकडा गया
ब्रेकिंग न्यूज़- पाक अधिकृत कश्मीर में सेना का ओपरेशन, मारे
गए सैंकड़ो आतंकी
ब्रेकिंग न्यूज़ -भारत की सीमा चारो और से सील,,चीन
हटा पीछे ..

ब्रेकिंग न्यूज़ -पूरे भारत में अस्त्र शास्त्र बनाने क लिए
फैक्ट्री खोली गई.. बड़े पैमाने पर युवाओं की सेना में भरती,
रक्षा अनुसन्धान के लिए क़ानून पारित
ब्रेकिंग न्यूज़ - नरेन्द्र मोदी ने काले धन को राष्ट्रीय
संपत्ति घोषित किया...भारत को शुरू में 100 लाख करोड़
रूपया मिला वापस
ब्रेकिंग न्यूज़- पेट्रोल 40 रूपए सस्ता हुआ, डीज़ल सरकार खुद
बनाएगी, नहीं होगा आयात,,मिलेगा 10 रूपए में
ब्रेकिंग न्यूज़ - भारत में पहली बार ..योग्यता अनुसार रोजगार
का अधिकार कानून पारित
ब्रेकिंग न्यूज़ -सब्सिडी समाप्त, गरीबो को मुफ्त
ही मिलेगी Gas, मध्यम वर्ग के लिए बनाए जाएंगे बायो gas
प्लांट ...
ब्रेकिंग न्यूज़ - विदेशी कंपनियों से वापस लिए गए
कोयला भण्डार ... अब बन सकेगी सस्ती बिजली, बाद में
दी जाएगी मुफ्त !!
ब्रेकिंग न्यूज़ -बंगलादेशियो को भगाया जाएगा वापस, हिन्दू धर्म
पर शोध के लिए कमेटी गठित
ब्रेकिंग न्यूज़ -संस्कृत भारत की राष्ट्र भाषा घोषित, संस्कृत
विद्वानों का पेनल गठित, किया जाएगा सरलीकरण !!
सभी भारतीय भाषाओ को मिलेगा अन्ग्रेजी से अधिक
सम्मान !! ....... !!
मित्रो ये तो एक छोटा सा प्रस्तुती कारन है ...2014 के बाद
भारत का इतिहास सदैव के लिए बदल जाएगा !! ऊपर
जाएगा या नीचे ..ये भारत की जनता के कर्मो और वोटिंग वाले
दिन किये जाने वाली हरकत पर निर्भर....
ब्रेकिंग न्यूज़ आपको कैसी लगी आवश्य बताये..

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Jodha Was Akabar's Wife ?? - मुगल शासक अकबर



!! जोधा बाई अकबर की पत्नी नहीं थी !!
मुर्ख इतिहास तो यही कहता है कि जयपुर के राजा भारमल
की बेटी का विवाह मुगल शासक अकबर के साथ हुआ था किंतु
सच कुछ और ही है...!
वस्तुत: न तो जोधाबाई का विवाह अकबर के साथ
कराया गया था और न ही विदाई के समय जोधाबाई

को दिल्ली ही भेजा गया था. अब प्रश्न उठता है कि फिर
जोधाबाई के नाम पर किस युवती से अकबर का विवाह
रचाया गया था ?
अकबर का विवाह जोधाबाई के नाम पर दीवान वीरमल
की बेटी पानबाई के साथ रचाया गया था. दीवान वीरमल
का पिता खाजूखाँ अकबर की सेना का मुखिया था.
किसी बड़ी ग़लती के कारण अकबर ने खाजूखाँ को जेल में डालकर
खोड़ाबेड़ी पहना दी और फाँसी का हुक्म दिया. मौका पाकर
खाजूखाँ खोड़ाबेड़ी तोड़ जेल से भाग गया और सपरिवार जयपुर आ
पगड़ी धारणकर शाह बन गया. खाजूखाँ का बेटा वीरमल
बड़ा ही तेज और होनहार था, सो दीवान बना लिया गया. यह भेद
बहुत कम लोगों को ही ज्ञात था.! दीवान वीरमल का विवाह
दीवालबाई के साथ हुआ था. पानबाई वीरमल और दीवालबाई
की पुत्री थी. पानबाई और जोधाबाई हम उम्र व दिखने में
दोनों एक जैसी थी. इस प्रकरण में मेड़ता के राव
दूदा राजा मानसिंह के पूरे सहयोगी और परामर्शक रहे. राव दूदा के
परामर्श से जोधाबाई को जोधपुर भेज दिया गया. इसके साथ
हिम्मत सिंह और उसकी पत्नी मूलीबाई को जोधाबाई के धर्म के
पिता-माता बनाकर भेजा गया, परन्तु भेद खुल जाने के डर से
दूदा इन्हें मेड़ता ले गया, और वहाँ से ठिकानापति बनाकर
कुड़की भेज दिया. जोधाबाई का नाम जगत कुंवर कर
दिया गया और राव दूदा ने उससे अपने पुत्र का विवाह रचा दिया.
इस प्रकार जयपुर के राजा भारमल की बेटी जोधाबाई उर्फ जगत
कुंवर का विवाह तो मेड़ता के राव दूदा के बेटे रतन सिंह के साथ
हुआ था. विवाह के एक वर्ष बाद जगत कुंवर ने एक
बालिका को जन्म दिया. यही बालिका मीराबाई थी. इधर विवाह
के बाद अकबर ने कई बार जोधाबाई (पानबाई) को कहा कि वह
मानसिंह को शीघ्र दिल्ली बुला ले. पहले तो पानबाई
सुनी अनसुनी करती रही परन्तु जब अकबर बहुत परेशान करने
लगा तो पानबाई ने मानसिंह के पास समाचार भेजा कि वें शीघ्र
दिल्ली चले आये नहीं तो वह सारा भेद खोल देगी. ऐसी स्थिति में
मानसिंह क्या करते, उन्हें न चाहते हुए भी मजबूर होकर
दिल्ली जाना पड़ा. अकबर व पानबाई उर्फ जोधाबाई
दम्पति की संतान सलीम हुए, जिसे इतिहास जहाँगीर के नाम से
जनता है ! ..

Friday, June 14, 2013

किस रोग में कौन सा रस लेंगे? - Ayurveda Tips



किस रोग में कौन सा रस लेंगे?
______________________________________________
______
भूख लगाने के हेतुः प्रातःकाल खाली पेट नींबू का पानी पियें। खाने
से पहले अदरक का कचूमर सैंधव नमक के साथ लें।
रक्तशुद्धिः नींबू, गाजर, गोभी, चुकन्दर, पालक, सेव, तुलसी, नीम
और बेल के पत्तों का रस।
दमाः लहसुन, अदरक, तुलसी, चुकन्दर, गोभी, गाजर,
मीठी द्राक्ष का रस, भाजी का सूप अथवा मूँग का सूप और
बकरी का शुद्ध दूध लाभदायक है। घी, तेल, मक्खन वर्जित है।
उच्च रक्तचापः गाजर, अंगूर, मोसम्मी और ज्वारों का रस।

मानसिक तथा शारीरिक आराम आवश्यक है।
निम्न रक्तचापः मीठे फलों का रस लें, किन्तु खट्टे
फलों का उपयोग न करें। अंगूर और मोसम्मी का रस अथवा दूध
भी लाभदायक है।
पीलियाः अंगूर, सेव, रसभरी, मोसम्मी। अंगूर की अनुपलब्धि पर
लाल मुनक्के तथा किसमिस का पानी। गन्ने को चूसकर उसका रस
पियें। केले में 1.5 ग्राम चूना लगाकर कुछ समय रखकर फिर
खायें।
मुहाँसों के दागः गाजर, तरबूज, प्याज, तुलसी और पालक का रस।
संधिवातः लहसुन, अदरक, गाजर, पालक, ककड़ी, गोभी,
हरा धनिया, नारियल का पानी तथा सेव और गेहूँ के ज्वारे।
एसीडिटीः गाजर, पालक, ककड़ी, तुलसी का रस, फलों का रस
अधिक लें। अंगूर मोसम्मी तथा दूध भी लाभदायक है।
कैंसरः गेहूँ के ज्वारे, गाजर और अंगूर का रस।
सुन्दर बनने के लिएः सुबह-दोपहर नारियल का पानी या बबूल
का रस लें। नारियल के पानी से चेहरा साफ करें।
फोड़े-फुन्सियाँ- गाजर, पालक, ककड़ी, गोभी और नारियल
का रस।
कोलाइटिसः गाजर, पालक और पाइनेपल का रस। 70 प्रतिशत
गाजर के रस के साथ अन्य रस समप्राण। चुकन्दर, नारियल,
ककड़ी, गोभी के रस का मिश्रण भी उपयोगी है।
अल्सरः अंगूर, गाजर, गोभी का रस। केवल दुग्धाहार पर
रहना आवश्यक है।
सर्दी-कफः मूली, अदरक, लहसुन, तुलसी, गाजर का रस, मूँग
अथवा भाजी का सूप।
ब्रोन्काइटिसः पपीता, गाजर, अदरक, तुलसी, पाइनेपल का रस,
मूँग का सूप। स्टार्चवाली खुराक वर्जित।
दाँत निकलते बच्चे के लिएः पाइनेपल का रस थोड़ा नींबू डालकर
रोज चार औंस(100-125 ग्राम)।
रक्तवृद्धि के लिएः मोसम्मी, अंगूर, पालक, टमाटर, चुकन्दर,
सेव, रसभरी का रस रात को। रात को भिगोया हुआ खजूर
का पानी सुबह में। इलायची के साथ केले भी उपयोगी हैं।
स्त्रियों को मासिक धर्म कष्टः अंगूर, पाइनेपल
तथा रसभरी का रस।
आँखों के तेज के लिएः गाजर का रस तथा हरे धनिया का रस श्रेष्ठ
है।
अनिद्राः अंगूर और सेव का रस। पीपरामूल शहद के साथ।
वजन बढ़ाने के लिएः पालक, गाजर, चुकन्दर, नारियल और गोभी के
रस का मिश्रण, दूध, दही, सूखा मेवा, अंगूर और सेवों का रस।
डायबिटीजः गोभी, गाजर, नारियल, करेला और पालक का रस।
पथरीः पत्तों वाली भाजी न लें। ककड़ी का रस श्रेष्ठ है। सेव
अथवा गाजर या कद्दू का रस भी सहायक है। जौ एवं सहजने
का सूप भी लाभदायक है।
सिरदर्दः ककड़ी, चुकन्दर, गाजर, गोभी और नारियल के रस
का मिश्रण।
किडनी का दर्दः गाजर, पालक, ककड़ी, अदरक और नारियल
का रस।
फ्लूः अदरक, तुलसी, गाजर का रस।
वजन घटाने के लिएः पाइनेपल, गोभी, तरबूज का रस, नींबू का रस।
पायरियाः गेहूँ के ज्वारे, गाजर, नारियल, ककड़ी, पालक और सुआ
की भाजी का रस। कच्चा अधिक खायें।
बवासीरः मूली का रस, अदरक का रस घी डालकर।
डिब्बेपैक फलों के रस से बचोः
बंद डिब्बों का रस भूलकर भी उपयोग में न लें। उसमें बेन्जोइक
एसिड होता है। यह एसिड तनिक भी कोमल चमड़ी का स्पर्श करे
तो फफोले पड़ जाते हैं। और उसमें उपयोग में
लाया जानेवाला सोडियम बेन्जोइक नामक रसायन
यदि कुत्ता भी दो ग्राम के लगभग खा ले तो तत्काल मृत्यु
को प्राप्त हो जाता है। उपरोक्त रसायन फलों के रस,
कन्फेक्शनरी, अमरूद, जेली, अचार आदि में प्रयुक्त होते हैं।
उनका उपयोग मेहमानों के सत्कारार्थ या बच्चों को प्रसन्न करने
के लिए कभी भूलकर भी न करें।
'फ्रेशफ्रूट' के लेबल में मिलती किसी भी बोतल या डिब्बे में ताजे
फल अथवा उनका रस कभी नहीं होता। बाजार में
बिकता ताजा 'ओरेन्ज' कभी भी संतरा-नारंगी का रस नहीं होता।
उसमें चीनी, सैक्रीन और कृत्रिम रंग ही प्रयुक्त होते हैं जो आपके
दाँतों और आँतड़ियों को हानि पहुँचा कर अंत में कैंसर को जन्म देते
हैं। बंद डिब्बों में निहित फल या रस जो आप पीते हैं उन पर
जो अत्याचार होते हैं वे जानने योग्य हैं। सर्वप्रथम तो बेचारे फल
को उफनते गरम पानी में धोया जाता है। फिर पकाया जाता है।
ऊपर का छिलका निकाल लिया जाता है। इसमें
चाशनी डाली जाती है और रस ताजा रहे इसके लिए उसमें विविध
रसायन (कैमीकल्स) डाले जाते हैं। उसमें कैल्शियम नाइट्रेट, एलम
और मैग्नेशियम क्लोराइड उडेला जाता है जिसके कारण
अँतड़ियों में छेद हो जाते हैं, किडनी को हानि पहुँचती है, मसूढ़े सूज
जाते हैं। जो लोग पुलाव के लिए बाजार के बंद डिब्बों के मटर
उपयोग में लेते हैं उन्हें हरे और ताजा रखने के लिए उनमें मैग्नेशियम
क्लोराइड डाला जाता है। मक्की के दानों को ताजा रखने के लिए
सल्फर डायोक्साइड नामक विषैला रसायन (कैमीकल)
डाला जाता है। एरीथ्रोसिन नामक रसायन कोकटेल में प्रयुक्त
होता है। टमाटर के रस में नाइट्रेटस डाला जाता है। शाकभाजी के
डिब्बों को बंद करते समय शाकभाजी के फलों में जो नमक
डाला जाता है वह साधारण नमक से 45 गुना अधिक हानिकारक
होता है।
इसलिए अपने और बच्चों के स्वास्थ्य के लिए और मेहमान-
नवाजी के फैशन के लिए भी ऐसे बंद
डिब्बों की शाकभाजी का उपयोग करके स्वास्थ्य
को स्थायी जोखिम में न डालें।


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Hindu History





हिन्दू धर्म का इतिहास अति प्राचीन है। इस धर्म को वेदकाल
से भी पूर्व का माना जाता है, क्योंकि वैदिक काल और
वेदों की रचना का काल अलग-अलग माना जाता है।
यहां शताब्दियों से मौखिक परंपरा चलती रही, जिसके
द्वारा इसका इतिहास व ग्रन्थ आगे बढ़ते रहे। उसके बाद इसे
लिपिबद्ध करने का काल भी बहुत लंबा रहा है। हिन्दू धर्म के
सर्वपूज्य ग्रन्थ हैं वेद। वेदों की रचना किसी एक काल में
नहीं हुई। विद्वानों ने वेदों के रचनाकाल का आरंभ ४५०० ई.पू. से
माना है।
यानि यह धीरे-धीरे रचे गए और अंतत: पहले वेद
को तीन भागों में संकलित किया गया- ऋग्वेद, यजुर्वेद व
सामवेद जिसे वेदत्रयी कहा जाता था। मान्यता अनुसार वेद
का विभाजन राम के जन्म के पूर्व पुरुरवा ऋषि के समय में हुआ
था। बाद में अथर्ववेद का संकलन
ऋषि अथर्वा द्वारा किया गया। वहीं एक अन्य
मान्यता अनुसार कृष्ण के समय में वेद व्यास ने वेदों का विभाग
कर उन्हें लिपिबद्ध किया था। इस मान से लिखित रूप में आज से
६५०८ वर्ष पूर्व पुराने हैं वेद। श्रीकृष्ण के आज से ५३०० वर्ष
पूर्व होने के तथ्य ढूँढ लिए गए हैं।
हिंदू और जैन धर्म की उत्पत्ति पूर्व आर्यों की अवधारणा में है
जो ४५०० ई.पू. मध्य एशिया से हिमालय तक फैले थे। आर्यों की ही एक शाखा ने पारसी धर्म
की स्थापना भी की। इसके बाद क्रमश: यहूदी धर्म दो हजार
ई.पू., बौद्ध धर्म पाँच सौ ई.पू., ईसाई धर्म सिर्फ दो हजार
वर्ष पूर्व, इस्लाम धर्म आज से १४०० वर्ष पूर्व हुआ।
धार्मिक साहित्य अनुसार हिंदू धर्म की कुछ और भी धारणाएँ हैं।
मान्यता यह भी है कि ९० हजार वर्ष पूर्व इसका आरंभ हुआ
था। रामायण, महाभारत और पुराणों में सूर्य और चंद्रवंशी
राजाओं की वंश परम्परा का उल्लेख उपलब्ध है। इसके
अलावा भी अनेक वंशों की उत्पति और परम्परा का वर्णन
आता है। उक्त सभी को इतिहास सम्मत क्रमबद्ध लिखना बहुत
ही कठिन कार्य है, क्योंकि पुराणों में उक्त इतिहास को अलग-
अलग तरह से व्यक्त किया गया है जिसके कारण इसके सूत्रों में
बिखराव और भ्रम निर्मित जान पड़ता है, फिर भी धर्म के
ज्ञाताओं के लिए यह भ्रम नहीं है।
असल में हिंदुओं ने अपने इतिहास को गाकर, रटकर और सूत्रों के
आधार पर मुखाग्र जिंदा बनाए रखा। यही कारण रहा कि वह
इतिहास धीरे-धीरे काव्यमय और श्रृंगारिक होता गया जिसे
आधुनिक लोग इतिहास मानने को तैयार नहीं हैं। वह समय
ऐसा था जबकि कागज और कलम नहीं होते थे। इतिहास
लिखा जाता था शिलाओं पर, पत्थरों पर और मन पर।
हिंदू धर्म के इतिहास ग्रंथ पढ़ें तो ऋषि-मुनियों की परम्परा के
पूर्व मनुओं की परम्परा का उल्लेख मिलता है जिन्हें जैन धर्म में
कुलकर कहा गया है। ऐसे क्रमश: १४ मनु माने गए हैं जिन्होंने
समाज को सभ्य और तकनीकी सम्पन्न बनाने के लिए अथक
प्रयास किए। धरती के प्रथम मानव का नाम स्वायंभव मनु
था और प्रथम ‍स्त्री थी शतरूपा। महाभारत में आठ मनुओं
का उल्लेख है। इस वक्त धरती पर आठवें मनु वैवस्वत
की ही संतानें हैं। आठवें मनु वैवस्वत के काल में ही भगवान
विष्णु का मत्स्य अवतार हुआ था।
पुराणों में हिंदू इतिहास का आरंभ सृष्टि उत्पत्ति से
ही माना जाता है। ऐसा कहना कि यहाँ से शुरुआत हुई यह ‍शायद
उचित न होगा फिर भी हिंदू इतिहास ग्रंथ महाभारत और
पुराणों में मनु (प्रथम मानव) से भगवान कृष्ण की पीढ़ी तक
का उल्लेख मिलता है।

Vedas - वेद - 1. ऋग्वेद 2. यजुर्वेद 3. सामवेद 4. अथर्ववेद।



वेद शब्द संस्कृत भाषा के चार "विद्" और एक "विद्लृ" धातुओं
से बना है। जिनका अर्थ हैं- विद सत्तायाम् - (सत्तार्थ)
होना; विद विचारे - विचार करना; विद ज्ञाने - ज्ञान करना,
जानना; विद चेतनाख्याननिवासेषु - प्रेरणा देना, खोलकर
बताना तथा जीवन का आधार होना; विद्लृ लाभे - प्राप्त
करना इत्यादि। इन सब का संयोग से पदार्थ बनेगा - परमाणु से
लेकर परमात्मा तक सब सत्ताओं का विचारपूर्वक

ज्ञानविज्ञान जहां हो, उक्त ज्ञानविज्ञान के आधार पर
मानविक कर्मों के विषय में विधि-निषेधरूप प्रेरणा देना और
सत्य का मण्डन तथा असत्य का खण्डन खोलकर कहना,
नित्यजीवन का आधार होना आदि जिसका कर्तव्य हो,
आत्मा आदि अत्यन्त रहस्यमय पदार्थों तक
की प्राप्ति जिसके बिना सम्भव नहीं हो वह वेद ह
अर्थात् जिस से हमें ज्ञान का लाभ,
ईश्वर आदि अनन्यप्रमाणसिद्ध पदार्थों की सत्ता का बोध
(ज्ञान), विचार आदि उत्तम कर्मों की विधि, विद्या, सुख
आदि उत्तम पदार्थों की प्राप्ति होती हो वही Ved Hai
वेद सनातन धर्म के प्राचीन पवित्र
ग्रंथों का नाम है । केवल इन ग्रन्थों में ही वेद शब्दार्थ लागू
होता है, जिन में ज्ञान, कर्म, उपासना के समग्रविवरण
उपलब्ध है। ज्ञानादि तीनों का सामूहिक नाम है त्रयीविद्या,
इसलिये वेदों का 'त्रयी' भी नाम होता है। वेदों को श्रुति
भी कहा जाता है, क्योंकि पहले मुद्रण
की व्यवस्था बिना इनको एक दूसरे से सुन- सुनकर याद
रखा गया इस प्रकार वेद प्राचीन भारत के वैदिक काल की
वाचिक परम्परा की अनुपम कृति है जो वंशानुगत रूप से
हज़ारों वर्षों से चली आ रही है । नित्यवस्तुवों का अस्तित्व
नित्य होने से उनका ज्ञान भी नित्य होना अनिवार्य है। ईश्वर
के अलावा दूसरी कोई वस्तु नहीं है जो कि नित्यज्ञान
का आधार हो। इसलिये भारतीय विचारधारा मैं वेद अपौरुषेय और
ईश्वररचित माने जाते हैं। वेद ही सनातन धर्म के सर्वोच्च और
सर्वोपरि धर्मग्रन्थ हैं।
वेदों का निरूपम महत्व
भारतीय संस्कृति में सनातन धर्म के मूल और सब से प्राचीन
ग्रन्थ वेद हैं।
हिन्दू धर्म अनुसार आर्षयुग में ब्रह्माऋषिदेव:कोटी से लेकर
जैमिनि तक के ऋषि-मुनियोंने शब्दप्रमाण के रूप में
इन्हीं को माने हैं और इनके आधार पर अपने
ग्रन्थों का निर्माण भी किये हैं।
हिन्दू धर्म में ब्राह्मण, आरण्यक, उपनिषद्, इतिहास
आदि महाग्रन्थ वेदों का व्याख्यानस्वरूप हैं।
ऋषिदेव:कोटी कणाद "तद्वचनादाम्नायस्य प्राणाण्यम्"
और "बुद्धिपूर्वा वाक्यकृतिर्वेदे" कहकर वेद को दर्शन और
विज्ञान का भी स्रोत माना है।[कृपया उद्धरण जोड़ें]
हिन्दू धर्म अनुसार सबसे प्राचीन नियमविधाता महर्षि मनु
ने कहा "वेदोऽखिलो धर्ममूलम्" - खिलरहित वेद अर्थात् मूल
संहितारूप वेद धर्मशास्त्र का आधार है -
न केवल धार्मिक किन्तु ऐतिहासिक दृष्टि से
भी वेदों का असाधारण महत्त्व है। वैदिक युग के
आर्यों की संस्कृति और सभ्यता जानने का एकमात्र साधन
यही है।
मानव-जाति और विशेषतः आर्यों ने अपने शैशव में धर्म और
समाज का किस प्रकार विकास किया इसका ज्ञान वेदों से
ही मिलता है।
विश्व के वाङ्मय में इनसे प्राचीनतम कोई पुस्तक नहीं है।
आर्य-भाषाओं का मूलस्वरूप निर्धारित करने में वैदिक
भाषा अत्यधिक सहायक सिद्ध हुई है।
वेदवेत्ता महर्षि स्वामी दयानन्द सरस्वती देव:कोटी के
विचार में ज्ञान, कर्म, उपासना और विज्ञान वेदों के विषय
हैं। जीव, ईश्वर, प्रकृति इन तीन अनादि नित्य सत्ताओं
का निज स्वरूप का ज्ञान केवल वेद से ही उपलब्ध होता

वैदिक वाङ्मय का शास्त्रीय स्वरुप
वर्तमान काल में वेद चार माने जाते हैं। उनके नाम हैं-
(१) ऋग्वेद, (२) यजुर्वेद, (३) सामवेद तथा (४) अथर्ववेद
द्वापरयुग की समाप्ति के पूर्व वेदों के उक्त चार विभाग अलग-
अलग नहीं थे। उस समय तो ऋक्, यजुः और साम - इन तीन
शब्द-शैलियों की संग्रहात्मक एक विशिष्ट अध्ययनीय शब्द-
राशि ही वेद कहलाती थी। विश्व में शब्द-प्रयोग की तीन
शैलियाँ होती है; जो पद्य (कविता), गद्य और गानरुप से
प्रसिद्ध हैं। पद्य में अक्षर-संख्या तथा पाद एवं विराम
का निश्चित नियम होता है। अतः निश्चित अक्षर-
संख्या तथा पाद एवं विराम वाले वेद-मन्त्रों की संज्ञा ‘ऋक्’
है। जिन मन्त्रों में छन्द के नियमानुसार अक्षर-
संख्या तथा पाद एवं विराम ऋषिदृष्ट नहीं है, वे गद्यात्मक
मन्त्र ‘यजुः’ कहलाते हैं और जितने मन्त्र गानात्मक हैं, वे
मन्त्र ‘साम’ कहलाते हैं। इन तीन प्रकार की शब्द-प्रकाशन-
शैलियों के आधार पर ही शास्त्र एवं लोक में वेद के लिये ‘त्रयी’
शब्द का भी व्यवहार किया जाता है।
वेद के पठन-पाठन के क्रम में गुरुमुख से श्रवण एवं याद करने
का वेद के संरक्षण एवं सफलता की दृष्टि से अत्यन्त महत्त्व
है। इसी कारण वेद को ‘श्रुति’ भी कहते हैं। वेद परिश्रमपूर्वक
अभ्यास द्वारा संरक्षणीय है, इस कारण इसका नाम ‘आम्नाय’
भी है।
द्वापरयुग की समाप्ति के समय श्रीकृष्णद्वैपायन वेदव्यास
जी ने यज्ञानुष्ठान के उपयोग को दृष्टिगत उस एक वेद के चार
विभाग कर दिये और इन चारों विभागों की शिक्षा चार
शिष्यों को दी। ये ही चार विभाग ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद और
अथर्ववेद के नाम से प्रसिद्ध है। पैल, वैशम्पायन, जैमिनि और
सुमन्तु नामक -चार शिष्यों को क्रमशः ऋग्वेद, यजुर्वेद,
सामवेद और अथर्ववेद की शिक्षा दी। इन चार शिष्यों ने शाकल
आदि अपने भिन्न-भिन्न शिष्यों को पढ़ाया। इन शिष्यों के
द्वारा अपने-अपने अधीत वेदों के प्रचार व संरक्षण के कारण वे
शाखाएँ उन्हीं के नाम से प्रसिद्ध हैं। वेदों को तीन भागों में
बांटा जा सकता है - ज्ञानकाण्ड, उपासनाकाण्ड और
कर्मकाण्ड।
चतुर्वेद
वेद चार हैं- ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद एवं अथर्ववेद। प्रत्येक
वेद की अनेक शाखाएं बतायी गयी हैं। यथा ऋग्वेद की 21,
यजुर्वेद की 101, सामवेद की 1001, अर्थववेद की 91 इस
प्रकार 1131 शाखाएं हैं परन्तु 12 शाखाएं ही मूल ग्रन्थों में
उपलब्ध हैं। वेद की प्रत्येक शाखा की वैदिक शब्द राशि चार
भागों में उपलब्ध है। 1. संहिता 2. ब्राह्मण 3. आरण्यक 4.
उपनिषद्। इनमें संहिता को ही वेद माना जाता है। शेष वेदों के
व्याख्या ग्रन्थ हैं। वेद तो चार ही हैं- 1. ऋग्वेद 2. यजुर्वेद
3. सामवेद 4. अथर्ववेद।
1. ऋग्वेद - ऋग्वेद को चारों वेदों में सबसे प्राचीन
माना जाता है। इसको दो प्रकार से बाँटा गया है। प्रथम प्रकार
में इसे 10 मण्डलों मंे विभाजित किया गया है।
मण्डलों को सूक्तों में, सूक्त में कुछ ऋचाएं होती हैं। कुल ऋचाएं
1052 हैं। दूसरे प्रकार से ऋग्वेद में 64 अध्याय हैं। आठ-आठ
अध्यायों को मिलाकर एक अष्टक बनाया गया है। ऐसे कुल आठ
अष्टक हैं। फिर प्रत्येक अध्याय को वर्गों में विभाजित
किया गया है। वर्गों की संख्या भिन्न-भिन्न अध्यायों में भिन्न
भिन्न ही है। कुल वर्ग संख्या 2024 है। प्रत्येक वर्ग में कुछ
मंत्र होते हैं। सृष्टि के अनेक रहस्यों का इनमें उद्घाटन
किया गया है। पहले इसकी 21 शाखाएं थीं परन्तु वर्तमान में
इसकी शाकल शाखा का ही प्रचार है।
2. यजुर्वेद - इसमें गद्य और पद्य दोनों ही हैं। इसमें यज्ञ
कर्म की प्रधानता है। प्राचीन काल में इसकी 101 शाखाएं
थीं परन्तु वर्तमान में केवल पांच शाखाएं हैं - काठक, कपिष्ठल,
मैत्रायणी, तैत्तिरीय, वाजसनेयी। इस वेद के दो भेद हैं - कृष्ण
यजुर्वेद और शुक्ल यजुर्वेद। कृष्ण यजुर्वेद का संकलन
महर्षि वेद व्यास ने किया है। इसका दूसरा नाम तैत्तिरीय
संहिता भी है। इसमें मंत्र और ब्राह्मण भाग मिश्रित हैं। शुक्ल
यजुर्वेद - इसे सूर्य ने याज्ञवल्क्य को उपदेश के रूप में
दिया था। इसमें 15 शाखाएं थीं परन्तु वर्तमान में माध्यन्दिन
को जिसे वाजसनेयी भी कहते हैं प्राप्त हैं। इसमें 40 अध्याय,
303 अनुवाक एवं 1975 मंत्र हैं। अन्तिम चालीसवां अध्याय
ईशावास्योपनिषद है।
3. सामवेद - यह गेय ग्रन्थ है। इसमें गान विद्या का भण्डार
है, यह भारतीय संगीत का मूल है। ऋचाओं के गायन को ही साम
कहते हैं। इसकी 1001 शाखाएं थीं। परन्तु आजकल तीन
ही प्रचलित हैं - कोथुमीय, जैमिनीय और राणायनीय।
इसको पूर्वार्चिक और उत्तरार्चिक में बांटा गया है। पूर्वार्चिक
में चार काण्ड हैं - आग्नेय काण्ड, ऐन्द्र काण्ड, पवमान काण्ड
और आरण्य काण्ड। चारों काण्डों में कुल 640 मंत्र हैं। फिर
महानाम्न्यार्चिक के 10 मंत्र हंै। इस प्रकार पूर्वार्चिक में कुल
650 मंत्र हैं। छः प्रपाठक हैं। उत्तरार्चिक को 21 अध्यायों में
बांटा गया। नौ प्रपाठक हैं। इसमें कुल 1225 मंत्र हैं। इस
प्रकार सामवेद में कुल 1875 मंत्र हैं। इसमें अधिकतर मंत्र
ऋग्वेद से लिए गए हैं। इसे उपासना का प्रवर्तक
भी कहा जा सकता है।
4. अथर्ववेद - इसमें गणित, विज्ञान, आयुर्वेद, समाज
शास्त्र, कृषि विज्ञान, आदि अनेक विषय वर्णित हैं। कुछ लोग
इसमें मंत्र-तंत्र भी खोजते हैं। यह वेद जहां ब्रह्म ज्ञान
का उपदेश करता है, वहीं मोक्ष का उपाय भी बताता है। इसे
ब्रह्म वेद भी कहते हैं। इसमें मुख्य रूप में अथर्वण और आंगिरस
ऋषियों के मंत्र होने के कारण अथर्व आंगिरस भी कहते हैं। यह
20 काण्डों में विभक्त है। प्रत्येक काण्ड में कई-कई सूत्र हैं
और सूत्रों में मंत्र हंै। इस वेद में कुल 5977 मंत्र हैं।
इसकी आजकल दो शाखाएं शौणिक एवं पिप्पलाद ही उपलब्ध हंै।
अथर्ववेद का विद्वान् चारों वेदों का ज्ञाता होता है। यज्ञ में
ऋग्वेद का होता देवों का आह्नान करता है, सामवेद
का उद्गाता सामगान करता है, यजुर्वेद का अध्वर्यु
देव:कोटीकर्म का वितान करता है तथा अथर्ववेद का ब्रह्म पूरे
यज्ञ कर्म पर नियंत्रण रखता है।
वैदिक स्वर प्रक्रिया
वेद की संहिताओं में मंत्राक्षरॊं में खड़ी तथा आड़ी रेखायें
लगाकर उनके उच्च, मध्यम, या मन्द संगीतमय स्वर उच्चारण
करने के संकेत किये गये हैं। इनको उदात्त, अनुदात्त ऒर
स्वारित के नाम से अभिगित किया गया हैं। ये स्वर बहुत
प्राचीन समय से प्रचलित हैं और महामुनि पतंजलि ने अपने
महाभाष्य में इनके मुख्य मुख्य नियमों का समावेश किया है ।

Thursday, June 13, 2013

Google Hangout Downloading And Installing



How to get Google Hangout and install on Smart phone. 
Easy Just follow Step :
1... Download Google play installer Cracked From Here
 2... Install it And Reboot ur phone
3...Now download Google plus Hangout From Here
4... Now install Hangout it Will Replace your Google Talk App
Now U r done.....

Extra Tag :
Google Hangouts App not downloading to replace Talk
Installing Google the Hangouts
Google+ Hangouts

About Hangout :


Google+ Hangouts is a free video chat service from Google that enables both one-on-one chats and group chats with up to ten people at a time.   While somewhat similar to Skype, FaceTime and Facebook Video Chat, Google Hangouts focuses more on "face-to-face-to-face" group interaction as opposed to one-on-one video chats, and utilizes sophisticated technology to seamlessly switch the focus to the person currently chatting.

Google Hangouts can be accessed via laptop and desktop computers as well as with Android mobile devices (Android "Gingerbread" v2.3 and later) and, in the near future, iOS-powered mobile devices.  In addition to video chatting, Google Hangouts users can share documents, scratchpads, images and YouTube videos with other users.   Google+ Hangouts also offers a "Hangouts on Air" feature for broadcasting live video conversations that are accessible to anyone with a web browser.

Upgrade Gmail Chat to the new Hangouts experience

Hangouts works right inside Gmail, where Chat did before. You can upgrade Chat to Hangouts by clicking on your photo icon in Gmail's chat list.

Ring your friends’ phones

Friends will receive your video call invitations no matter what device they’re using at the moment. If they’re not at their computer, their phone will ring so it’s easy for them to join. You can even add more people to ongoing video calls right from a mobile device.

Make video calls to connect face-to-face

Turn one-on-one or group conversations into live face-to-face video calls with up to 10 people at once. Catch up with friends and family even when you’re on the go, all for free.

Have more engaging conversations

See when your friends have read your messages and when they’re typing back. If a friend isn’t available when you try to reach them, they’ll see an alert next time they connect, keeping your conversations alive.

Easily go back to any of your Hangouts

Finding your ongoing conversations across devices and picking them back up is simple. And you can scroll back through past Hangouts to re-live what you talked about — from those epic trip photos to that nice note from a friend when you were home sick.

Wednesday, June 12, 2013

Four Way To Get Back Black Money From Swiss Bank



श्री राजीव दीक्षित कहते है इन ६० सालो में नेताओ ने
जो कला धन लूट के विदेशो में जमा किया है इसको वापस लाकर
इससे विकास करना है देश का | इसको वापस लाने के चार रास्ते
है :
१. पहला रास्ता है जिन बांको में ये धन जमा है उन बांको में ये धन
निजी संपत्ति के रूप में जमा है अगर हम इस धन को रास्ट्रीय
संपत्ति घोषित करा सके तोह ये धन किसी भी बैंक में
जमा नही हो सकता ये वापस भारत में
चला आयेगा किउंकि अंतरास्ट्रीय बैंकिंग व्यवस्था का एक नियम
है के किसी भी देश की रास्ट्रीय संपत्ति उसी देश में जमा होती है
वो जिस देश की होती है |

अब इस काम को करने के लिए दो संस्थाए हमारे पास है एक संसद
और दूसरा सुप्रीम कोर्ट | सुप्रीम कोर्ट की ताकत है के
वो किसी भी संपत्ति को रास्त्र की संपत्ति घोषित कर सकता है
और एकबार किया भी था यूरिया घोटाले में और सुईस बैंक से
पैसा वापिस भी आ गया था | भारत स्वाभिमान ने सुप्रीम कोर्ट में
एक मुकद्दमा लगाया है के अगर यूरिया घोटाले का पैसा सुप्रीम
कोर्ट ने रास्ट्र की संपत्ति घोषित किया था तोह चारा घोटाले
का भी रास्ट्र की संपत्ति है, बोफोर्स घोटाले का भी रास्ट्र
की संपत्ति है सभी घोटालो का पैसा रास्ट्र की संपत्ति है | और
इस तर्क से अगर सुप्रीम कोर्ट सहमत हो जाये तोह सारे
विदेशी बैंक में जमा कला धन को वो रास्ट्र की संपत्ति घोषित
कर सकता है | ये घोषणा होते ही हम International court
of justice में जा सकते है फैसले को ले कर और ICJ आर्डर करे
तोह दुनिया की 70 देशो की बैंक को पैसा वापस
करना पड़ेगा भारत को | BST का ये मुकद्दमा 6 महीने बाद
स्वीकार हो गया है |
२. दूसरा रास्ता ये है के हम 4 सालो में संसद में एक प्रस्ताब
पास करना चाहते है वो ये है के 15 Aug 1947 के बाद
जितना भी धन भारत से बाहार गया वो भारत की रास्ट्रीय
संपत्ति है बस | कोई तोह संसद मिलेगा जो ये प्रस्ताब संसद में
रखेगा उस दिन बहस होगी और जो जो विरोध करगा पक्की बात
होगी के पैसे उसी के है और सारा देश देखेगा बेईमान कौन कौन है
संसद में | अगर डर के मरे विरोध नही करेगा तोह प्रस्ताब पास
हो जायेगा फिर कानून बनेगा | अगर प्रस्ताब नही पास हुआ तोह
बेईमानो को दुबारा चुनके नही भेजना है |
३. तीसरा एक रास्ता है हम पूरा काले धन का हिसाब ले कर
International Court of Justice में जा सकते है और
दुनिया के 70 देशो के खिलाफ प्रतिबन्ध लगा सकते है अमेरिका ने
थोड़े देर पहले ऐसा किया | भारत भी ऐसा कर सकता है बस एक
वीर नेता की जरुरत है |
४. क चौथा रास्ता है के हम खुद चाहे तोह सुइजरलैंड से
दादागिरी करके पैसे ला सकते है सुइजरलैंड के पास न तोह
आर्मी है ना एयर फोर्स है ना नेभल फोर्स है | छोटा सा देश है
जनसँख्या भी बहुत कम है पोलीस भी नही है
तो थोड़ी दादागिरी करो तोह दे देंगे |
और सबसे बड़ी बात के भबिश्य में ये पैसा फिर से ना बाहार जाये
इसकी पक्की व्यवस्था करेंग

http://youtu.be/7sQYxS1FgqI

Tuesday, June 11, 2013

Why Godse Killed Gandhi ?



मैने गाँधी को क्यों मारा ? Why Godse Killed Gandhi ?
जानिये कुछ तथ्य जो कान्ग्रेस ने अभी तक प्रकाशित ही नही होने
दिया|
आखिर क्या कारण थे कि गोडसे जी ने तथाकित
राष्ट्रपिता को मारा, जोकि कोर्ट ने तो सुना लेकिन यह व्क्तवय
कभी भी सार्वजनिक न हो पाया|
आइये जानिये और योगदान दे गोदसे के विचारो को फैलाने मे.......
गाँधी-वध के मुकद्दमें के दौरान न्यायमूर्ति खोसला से नाथूराम ने
अपना वक्तव्य स्वयं पढ़ कर सुनाने की अनुमति माँगी थी और
उसे यह अनुमति मिली थी। नाथूराम गोडसे का यह न्यायालयीन
वक्तव्य भारत सरकार द्वारा प्रतिबन्धित कर दिया गया था।
इस प्रतिबन्ध के विरुद्ध नाथूराम गोडसे के भाई तथा गाँधी-वध

के सह-अभियुक्त गोपाल गोडसे ने ६० वर्षों तक वैधानिक लडाई
लड़ी और उसके फलस्वरूप सर्वोच्च न्यायालय ने इस प्रतिबन्ध
को हटा लिया तथा उस वक्तव्य के प्रकाशन की अनुमति दी।
नाथूराम गोडसे ने न्यायालय के समक्ष गाँधी-वध के जो १५०
कारण बताये थे उनमें से प्रमुख कारण निम्नलिखित हैं: -
1. अमृतसर के जलियाँवाला बाग़ गोली काण्ड (१९१९) से समस्त
देशवासी आक्रोश में थे तथा चाहते थे कि इस नरसंहार के नायक
जनरल डायर पर अभियोग चलाया जाये। गाँधी ने भारतवासियों के
इस आग्रह को समर्थन देने से स्पष्ठ मना कर दिया।
2. भगत सिंह व उसके साथियों के मृत्युदण्ड के निर्णय से
सारा देश क्षुब्ध था व गाँधी की ओर देख रहा था, कि वह
हस्तक्षेप कर इन देशभक्तों को मृत्यु से बचायें, किन्तु गाँधी ने
भगत सिंह की हिंसा को अनुचित ठहराते हुए जनसामान्य की इस
माँग को अस्वीकार कर दिया।
3. ६ मई १९४६ को समाजवादी कार्यकर्ताओं को दिये गये अपने
सम्बोधन में गाँधी ने मुस्लिम लीग की हिंसा के समक्ष
अपनी आहुति देने की प्रेरणा दी।
4. मोहम्मद अली जिन्ना आदि राष्ट्रवादी मुस्लिम नेताओं के
विरोध को अनदेखा करते हुए १९२१ में गाँधी ने खिलाफ़त आन्दोलन
को समर्थन देने की घोषणा की। तो भी केरल के
मोपला मुसलमानों द्वारा वहाँ के हिन्दुओं की मारकाट की जिसमें
लगभग १५०० हिन्दू मारे गये व २००० से अधिक को मुसलमान
बना लिया गया। गाँधी ने इस हिंसा का विरोध नहीं किया, वरन्
खुदा के बहादुर बन्दों की बहादुरी के रूप में वर्णन किया।
5. १९२६ में आर्य समाज द्वारा चलाए गए शुद्धि आन्दोलन में लगे
स्वामी श्रद्धानन्द की अब्दुल रशीद नामक मुस्लिम युवक ने
हत्या कर दी, इसकी प्रतिक्रियास्वरूप गाँधी ने अब्दुल रशीद
को अपना भाई कह कर उसके इस कृत्य को उचित ठहराया व
शुद्धि आन्दोलन को अनर्गल राष्ट्र-विरोधी तथा हिन्दू-मुस्लिम
एकता के लिये अहितकारी घोषित किया।
6. गाँधी ने अनेक अवसरों पर शिवाजी, महाराणा प्रताप व गुरू
गोबिन्द सिंह को पथभ्रष्ट देशभक्त कहा।
7. गाँधी ने जहाँ एक ओर कश्मीर के हिन्दू राजा हरि सिंह
को कश्मीर मुस्लिम बहुल होने से शासन छोड़ने व काशी जाकर
प्रायश्चित करने का परामर्श दिया, वहीं दूसरी ओर हैदराबाद के
निज़ाम के शासन का हिन्दू बहुल हैदराबाद में समर्थन किया।
8. यह गाँधी ही थे जिन्होंने मोहम्मद अली जिन्ना को कायदे-
आज़म की उपाधि दी।
9. कांग्रेस के ध्वज निर्धारण के लिये बनी समिति (१९३१) ने
सर्वसम्मति से चरखा अंकित भगवा वस्त्र पर निर्णय
लिया किन्तु गाँधी की जिद के कारण उसे तिरंगा कर दिया गया।
10. कांग्रेस के त्रिपुरा अधिवेशन में नेताजी सुभाष चन्द्र बोस
को बहुमत से कॉंग्रेस अध्यक्ष चुन लिया गया किन्तु
गाँधी पट्टाभि सीतारमय्या का समर्थन कर रहे थे, अत: सुभाष
बाबू ने निरन्तर विरोध व असहयोग के कारण प�� त्याग
दिया।
11. लाहौर कांग्रेस में वल्लभभाई पटेल का बहुमत से चुनाव
सम्पन्न हुआ किन्तु गाँधी की जिद के कारण यह पद जवाहरलाल
नेहरु को दिया गया।
12. १४-१५ १९४७ जून को दिल्ली में आयोजित अखिल भारतीय
कांग्रेस समिति की बैठक में भारत विभाजन का प्रस्ताव
अस्वीकृत होने वाला था, किन्तु गाँधी ने वहाँ पहुँच कर प्रस्ताव
का समर्थन करवाया। यह भी तब जबकि उन्होंने स्वयं ही यह
कहा था कि देश का विभाजन उनकी लाश पर होगा।
13. जवाहरलाल की अध्यक्षता में मन्त्रीमण्डल ने सोमनाथ
मन्दिर का सरकारी व्यय पर पुनर्निर्माण का प्रस्ताव पारित
किया, किन्तु गाँधी जो कि मन्त्रीमण्डल के सदस्य भी नहीं थे; ने
सोमनाथ मन्दिर पर सरकारी व्यय के प्रस्ताव को निरस्त
करवाया और १३ जनवरी १९४८ को आमरण अनशन के माध्यम से
सरकार पर दिल्ली की मस्जिदों का सरकारी खर्चे से पुनर्निर्माण
कराने के लिए दबाव डाला।
14. पाकिस्तान से आये विस्थापित हिन्दुओं ने
दिल्ली की खाली मस्जिदों में जब अस्थाई शरण ली तो गाँधी ने
उन उजड़े हिन्दुओं को जिनमें वृद्ध, स्त्रियाँ व बालक अधिक थे
मस्जिदों से खदेड़ बाहर ठिठुरते शीत में रात बिताने पर मजबूर
किया गया।
15. २२ अक्तूबर १९४७ को पाकिस्तान ने कश्मीर पर आक्रमण
कर दिया, उससे पूर्व माउण्टबैटन ने भारत सरकार से पाकिस्तान
सरकार को ५५ करोड़ रुपये की राशि देने का परामर्श दिया था।
केन्द्रीय मन्त्रिमण्डल ने आक्रमण के दृष्टिगत यह राशि देने
को टालने का निर्णय लिया किन्तु गाँधी ने उसी समय यह
राशि तुरन्त दिलवाने के लिए आमरण अनशन शुरू कर दिया जिसके
परिणामस्वरूप यह राशि पाकिस्तान को भारत के हितों के विपरीत
दे दी गयी।
16. जिन्ना की मांग थी कि पश्चिमी पाकिस्तान से
पूर्वी पाकिस्तान जाने में बहुत समय लगता है और हवाई जहाज से
जाने की सभी की औकात नहीं| तो हमको बिलकुल बीच भारत से
एक कोरिडोर बना कर दिया जाए.... जो लाहौर से ढाका जाता हो,
दिल्ली के पास से जाता हो..... जिसकी चौड़ाई कम से कम १६
किलोमीटर हो....४. १० मील के दोनों और सिर्फ मुस्लिम
बस्तियां ही बने.
जानिये कुछ तथ्य जो कान्ग्रेस ने अभी तक प्रकाशित ही नही होने
दिया|
आखिर क्या कारण थे कि गोडसे जी ने तथाकित
राष्ट्रपिता को मारा, जोकि कोर्ट ने तो सुना लेकिन यह व्क्तवय
कभी भी सार्वजनिक न हो पाया|
आइये जानिये और योगदान दे गोदसे के विचारो को फैलाने मे.......
गाँधी-वध के मुकद्दमें के दौरान न्यायमूर्ति खोसला से नाथूराम ने
अपना वक्तव्य स्वयं पढ़ कर सुनाने की अनुमति माँगी थी और
उसे यह अनुमति मिली थी। नाथूराम गोडसे का यह न्यायालयीन
वक्तव्य भारत सरकार द्वारा प्रतिबन्धित कर दिया गया था।
इस प्रतिबन्ध के विरुद्ध नाथूराम गोडसे के भाई तथा गाँधी-वध
के सह-अभियुक्त गोपाल गोडसे ने ६० वर्षों तक वैधानिक लडाई
लड़ी और उसके फलस्वरूप सर्वोच्च न्यायालय ने इस प्रतिबन्ध
को हटा लिया तथा उस वक्तव्य के प्रकाशन की अनुमति दी।
नाथूराम गोडसे ने न्यायालय के समक्ष गाँधी-वध के जो १५०
कारण बताये थे उनमें से प्रमुख कारण निम्नलिखित हैं: -
1. अमृतसर के जलियाँवाला बाग़ गोली काण्ड (१९१९) से समस्त
देशवासी आक्रोश में थे तथा चाहते थे कि इस नरसंहार के नायक
जनरल डायर पर अभियोग चलाया जाये। गाँधी ने भारतवासियों के
इस आग्रह को समर्थन देने से स्पष्ठ मना कर दिया।
2. भगत सिंह व उसके साथियों के मृत्युदण्ड के निर्णय से
सारा देश क्षुब्ध था व गाँधी की ओर देख रहा था, कि वह
हस्तक्षेप कर इन देशभक्तों को मृत्यु से बचायें, किन्तु गाँधी ने
भगत सिंह की हिंसा को अनुचित ठहराते हुए जनसामान्य की इस
माँग को अस्वीकार कर दिया।
3. ६ मई १९४६ को समाजवादी कार्यकर्ताओं को दिये गये अपने
सम्बोधन में गाँधी ने मुस्लिम लीग की हिंसा के समक्ष
अपनी आहुति देने की प्रेरणा दी।
4. मोहम्मद अली जिन्ना आदि राष्ट्रवादी मुस्लिम नेताओं के
विरोध को अनदेखा करते हुए १९२१ में गाँधी ने खिलाफ़त आन्दोलन
को समर्थन देने की घोषणा की। तो भी केरल के
मोपला मुसलमानों द्वारा वहाँ के हिन्दुओं की मारकाट की जिसमें
लगभग १५०० हिन्दू मारे गये व २००० से अधिक को मुसलमान
बना लिया गया। गाँधी ने इस हिंसा का विरोध नहीं किया, वरन्
खुदा के बहादुर बन्दों की बहादुरी के रूप में वर्णन किया।
5. १९२६ में आर्य समाज द्वारा चलाए गए शुद्धि आन्दोलन में लगे
स्वामी श्रद्धानन्द की अब्दुल रशीद नामक मुस्लिम युवक ने
हत्या कर दी, इसकी प्रतिक्रियास्वरूप गाँधी ने अब्दुल रशीद
को अपना भाई कह कर उसके इस कृत्य को उचित ठहराया व
शुद्धि आन्दोलन को अनर्गल राष्ट्र-विरोधी तथा हिन्दू-मुस्लिम
एकता के लिये अहितकारी घोषित किया।
6. गाँधी ने अनेक अवसरों पर शिवाजी, महाराणा प्रताप व गुरू
गोबिन्द सिंह को पथभ्रष्ट देशभक्त कहा।
7. गाँधी ने जहाँ एक ओर कश्मीर के हिन्दू राजा हरि सिंह
को कश्मीर मुस्लिम बहुल होने से शासन छोड़ने व काशी जाकर
प्रायश्चित करने का परामर्श दिया, वहीं दूसरी ओर हैदराबाद के
निज़ाम के शासन का हिन्दू बहुल हैदराबाद में समर्थन किया।
8. यह गाँधी ही थे जिन्होंने मोहम्मद अली जिन्ना को कायदे-
आज़म की उपाधि दी।
9. कांग्रेस के ध्वज निर्धारण के लिये बनी समिति (१९३१) ने
सर्वसम्मति से चरखा अंकित भगवा वस्त्र पर निर्णय
लिया किन्तु गाँधी की जिद के कारण उसे तिरंगा कर दिया गया।
10. कांग्रेस के त्रिपुरा अधिवेशन में नेताजी सुभाष चन्द्र बोस
को बहुमत से कॉंग्रेस अध्यक्ष चुन लिया गया किन्तु
गाँधी पट्टाभि सीतारमय्या का समर्थन कर रहे थे, अत: सुभाष
बाबू ने निरन्तर विरोध व असहयोग के कारण प�� त्याग
दिया।
11. लाहौर कांग्रेस में वल्लभभाई पटेल का बहुमत से चुनाव
सम्पन्न हुआ किन्तु गाँधी की जिद के कारण यह पद जवाहरलाल
नेहरु को दिया गया।
12. १४-१५ १९४७ जून को दिल्ली में आयोजित अखिल भारतीय
कांग्रेस समिति की बैठक में भारत विभाजन का प्रस्ताव
अस्वीकृत होने वाला था, किन्तु गाँधी ने वहाँ पहुँच कर प्रस्ताव
का समर्थन करवाया। यह भी तब जबकि उन्होंने स्वयं ही यह
कहा था कि देश का विभाजन उनकी लाश पर होगा।
13. जवाहरलाल की अध्यक्षता में मन्त्रीमण्डल ने सोमनाथ
मन्दिर का सरकारी व्यय पर पुनर्निर्माण का प्रस्ताव पारित
किया, किन्तु गाँधी जो कि मन्त्रीमण्डल के सदस्य भी नहीं थे; ने
सोमनाथ मन्दिर पर सरकारी व्यय के प्रस्ताव को निरस्त
करवाया और १३ जनवरी १९४८ को आमरण अनशन के माध्यम से
सरकार पर दिल्ली की मस्जिदों का सरकारी खर्चे से पुनर्निर्माण
कराने के लिए दबाव डाला।
14. पाकिस्तान से आये विस्थापित हिन्दुओं ने
दिल्ली की खाली मस्जिदों में जब अस्थाई शरण ली तो गाँधी ने
उन उजड़े हिन्दुओं को जिनमें वृद्ध, स्त्रियाँ व बालक अधिक थे
मस्जिदों से खदेड़ बाहर ठिठुरते शीत में रात बिताने पर मजबूर
किया गया।
15. २२ अक्तूबर १९४७ को पाकिस्तान ने कश्मीर पर आक्रमण
कर दिया, उससे पूर्व माउण्टबैटन ने भारत सरकार से पाकिस्तान
सरकार को ५५ करोड़ रुपये की राशि देने का परामर्श दिया था।
केन्द्रीय मन्त्रिमण्डल ने आक्रमण के दृष्टिगत यह राशि देने
को टालने का निर्णय लिया किन्तु गाँधी ने उसी समय यह
राशि तुरन्त दिलवाने के लिए आमरण अनशन शुरू कर दिया जिसके
परिणामस्वरूप यह राशि पाकिस्तान को भारत के हितों के विपरीत
दे दी गयी।
16. जिन्ना की मांग थी कि पश्चिमी पाकिस्तान से
पूर्वी पाकिस्तान जाने में बहुत समय लगता है और हवाई जहाज से
जाने की सभी की औकात नहीं| तो हमको बिलकुल बीच भारत से
एक कोरिडोर बना कर दिया जाए.... जो लाहौर से ढाका जाता हो,
दिल्ली के पास से जाता हो..... जिसकी चौड़ाई कम से कम १६
किलोमीटर हो....४. १० मील के दोनों और सिर्फ मुस्लिम
बस्तियां ही बने.
-
**** Every Patriotic Indian Should Read this
****
Why Godse Killed Gandhi ?
The Real story hidden by Govt of India. Many
books were banned by Govt due to Muslim
blackmailing and vote bank politics of
congress.

कोसीकलां (मथुरा) दंगे का पूरा सच - Kosi Kalan Riot Truth



कोसीकलां (मथुरा) दंगे का पूरा सच----
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कोसीकलां दंगे का प्रारंभ और क्रमवार विश्लेषण-
---------------------------- लेख बड़ा है मुश्किल से
पाँच मिनट लगेंगे इसे पढने में कृपया ज़रूर पढ़ें--
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१ जून २०१२, दिन शुक्रवार, तिथि निर्जला एकादशी, समय दोपहर
२ बजे

मुस्लिम समुदाय के जुमे की नमाज का समय कोसीकलां में
जिंदगी अपनी गति से बढ़ रही थी| दोपहर की नमाज समाप्त होने
के पश्चात् सब्जी मंडी में एक व्यापारी देवा ने एक ग्राहक
को सामान दे कर मस्जिद के निचे रखे ड्रम के पानी से हाथ
धो लिया| उसी समय मस्जिद से निचे उतर रहे खालिद शेख ने
व्यापारी देवा को ऐसा करते देख लिया और उसे फटकार दिया|
देवा ने कहा की अगर आपका पानी ख़राब हो गया तो मैं
क्षमा मांगता हूँ और ड्रम को दोबारा भरवा देता हूँ|
देवा ने दोबारा ड्रम को पानी से भरवा दिया|
दोबारा पानी भरवा देने के बाद
भी खालिद शेख अपने अहंकारवश देवा से मारपिट चालू कर दिया|
खालिद के ऐसा करने का अन्य हिन्दू व्यापारी बन्धुवों ने विरोध
किया| लेकिन
खालिद ने मस्जिद से अन्य मुस्लिमों को बुला लिया हिन्दुओं के
साथ
बर्बरता पूर्वक मारपीट करता हुआ मस्जिद में वापस
चला गया और उसके बाद
मस्जिद में उपस्थित मुस्लिमो ने हिन्दुओं पर मस्जिद के अन्दर से
ही पथराव
चालू कर दिया| इतना ही नहीं खालिद ने कोसी नगर के मुस्लिम
बहुल इलाके
"निकासे" के मुस्लिमो को ये सुचना दे दी की हमारी मस्जिद
को हिन्दुओं ने घेर लिया है और हमारे ऊपर हमला कर रहे हैं| ज्ञात
हो की खालिद शेख ६ महिना भारत में रहता है और ६
महिना सउदी अरब में रहता है| वह सउदी अरब से कोसीकलां और
उसके आसपास के क्षेत्रों के सभी मस्जिदों के लिए हवाला के
जरिये धन मुहैया करता है| इतना ही नहीं खालिद शेख
आई०एस०आई० का एजेंट भी है और मुस्लिम हितैषी सरकार जैसे
कांग्रेस और सपा के साथ प्रगाढ़ सम्बन्ध बनाये हुए है और उनके
हमेसा संपर्क में रहता है| कोसीकलां का पाकिस्तान कहे जाने वाले
मुस्लिम बहुल क्षेत्र "निकासे" से
सैकड़ों की संख्या में उग्र मुसलमानों की भीड़
अपना आतंकवादी रूप दिखाते हुए अपने विभिन्न प्रकार के घातक
हथियारों जैसे बम, पिस्तौल, पेट्रोल बम
इत्यादि से लैस हो कर हिन्दुओं पर हमला करते हुए उक्त मस्जिद
की तरफ बढ़ने लगे| लेकिन सब्जी मंडी मस्जिद और निकासे के
बिच स्थित हिन्दू बहुल क्षेत्र "बल्देव गंज" के हिन्दू भाइयों ने
निकासे के मुस्लिमो को मुहतोड़ जवाब दिया| इसपर गुस्साए
मुसलमानों ने तबाही का जो मंजर प्रस्तुत किया वो दिल दहला देने
वाला था| निकासे सीमा पर स्थित पंजाब नेसनल बैंक में घुस कर
मुसलमानों ने सिर्फ वहां की संपत्ति को केवल भारी नुकसान
ही पहुँचाया बल्कि लूटपाट का भी प्रयास किया|
इसका पूरा विवरण बैंक के सीसीटीवी कैमरे में कैद है जिसे अगर
प्रदेश सरकार चाहे तो देख सकती है| लूटपाट में असफल होने के
पश्चात् मुसलमानों ने बैंक को आग के हवाले कर दिया| बैंक के
बाहर मुस्लिम दंगाई और बैंक के अन्दर आग|
इसके बावजूद भी बैंक के अन्दर उपस्थित स्टाफ,
कर्मचारियों और ग्राहकों ने इधर- उधर शरण ले कर जैसे-तैसे
अपनी जान बचाई|
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मुसलमानों का गुस्सा और आतंकवादी गतिविधियाँ यही नहीं थमीं|
मुसलमानों ने निकासे सीमा पर स्थित लगभग सभी हिन्दू घरों में
घुस कर ना सिर्फ तोड़-फोड़ और लूटपाट करी बल्कि वहां मौजूद
हिन्दू माताओं और बहनों से भी बड़ी ही अश्लीलता पूर्ण
बद्तामिजियाँ कीं| दंगाइयों ने हिन्दुओं के घरों के निचे
रखी उनकी कारों को आग के हवाले कर दिया| जिसके कारण कई
हिन्दुओं के घर जल कर खाक हो गए| हिन्दुओं में बल्देव गंज और
निकासे सीमा पर स्थित आर०के० गर्ग, गुड्डू हतानियाँ, किशन
पंडित और प्रतिक जैन इत्यादि हिन्दू भाइयों के घर, वाहन, दुकान
और गोदाम आदि की भारी हानी हुई|
इनकी माता बहनों के साथ घर में घुस कर अमानवीय रूप से
बदतमीजी की गई|
मुस्लिम दंगाइयों ने आने-जाने वाले हिन्दू राहगीरों के करीब २
दर्जन वाहनों को आग के हवाले कर दिया और इनके साथ
बड़ी बेरहमी से मारपीट कर
बुरी तरह घायल कर दिया| मुस्लिम दंगाइयों की संख्या अचानक से
इतनी बढ़ गई की इनका सामना करने का साहस किसी में नहीं था|
यहाँ मुस्लिम दंगाई बल्देव गंज के युवाओं पर लगातार पत्थर और
बम इत्यादि से हमले कर रहे थे |
-------- हिन्दुओं के पास मुसलमानों के सामान हथियार नहीं थे
क्यूंकि प्रदेश सरकार ने अपने चुनाव पूर्व वादे के हिसाब से
मुस्लिम बस्तियों में कैम्प लगा कर 1 दिन में ही करीब 200
पिस्तौल के लाइसेंस बांटे थे और ये पहला वादा था जो अखिलेश
सिंह यादव की सपा सरकार ने पूरा किया था फिर भी उपलब्ध
हथियारों से बल्देव गंज के हिन्दू युवाओं ने इन मुस्लिम
आतताइयों का सामना कर इनके हमलों का मुहतोड़ जवाब दिया|
मुसलमानों के आक्रोशित और आतंकी जत्थे ने पूरी सब्जी मंडी,
अनाज मंडी और अनेक बाजारों इत्यादि को जला कर राख कर
दिया|
इस दंगे की सूचना मिलते ही पुलिस प्रशासन घटना स्थलों पर पहुँच
तो गया पर एक निरीह मूकदर्शक बन खड़ा रहा बस| मुसलमानों के
इस पथराव में कई हिन्दू भाई घायल हो गए| मुस्लमान जब बम
और गोलियां चला रहे थे तब ये नहीं देख रहे थे की सामने
वाला हिन्दू उनका परिचित है या मिलने वाला व्यक्ति है|
------------
मुसलमान केवल यह सोच कर हमला कर रहे थे की सामने
वाला हिन्दू है और
इनको जान से मार डालो| देखते ही देखते एक घंटे के अंतराल में
नगर
की सभी मस्जिदों से हिन्दुओं पर पथराव और बम इत्यादि फेंके
जाने लगे|
ऐसा लग रहा था की ये हिन्दुओं पर हमला पूर्व नियोजित था और
मानो हिन्दुओं पर इस हमले की तैयारी बहुत समय से हो रही थी|
ये ठीक वैसे ही था जैसे सुबह ८ बजे गोधरा में २००२ में
हजारो लीटर पेट्रोल अचानक से आ गया था जबकि इतने सुबह
गुजरात में पेट्रोल पम्प नहीं खुलते हैं |
इसके अलावा उन आतताई मुसलमानों का जत्था जहाँ कही से
भी निकलता था वहां की हिन्दुओं की चीजों को आग लगाते हुए
निकलता था| यह
देख नगर के हिन्दू भाई भयभीत हो गए और उन्होंने ने आस पास में
ग्रामीण इलाके में रह रहे अपने जानने वालों को फ़ोन पर
सुचना दी इन आतंकी मुसलमानों के कृत्य के बारे में की कैसे
मुस्लमान विध्वंश और आगजनी कर रहे हैं नगर में| जिसे सुन
ग्रामीण इलाके से करीब १०-१५ हजार लोग अपने हाथों में बन्दुक
और अन्य हथियार ले कर थोड़ी देर में कोसीकलां पहुँच इन
आतंकी मुसलमानों को खदेड़ा |
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इस बिच में मुसलमानों ने हिन्दुओं के सैनी मोहल्ले पर हमला बोल
दिया| मुसलमानों ने बमबारी से वहां की अनेक महिलाओं
को बुरी तरह घायल कर दिया|
अनेक मकानों को तहस-नहस कर दिया और उनके घरों को लूटा|
अश्लीलता का नंगा नाच वहां भी दिखाया मुसलमानों ने|
इसका विरोध करने वाले माली समाज के एक युवक सोनू
को गोलियों से छलनी कर दिया इन मुसलमानों ने |
सोनू की मौके पर ही ह्रदय विदारक चीखों के साथ मृत्यु हो गई|
उन दंगाइयों के जाने के बाद पुलिस भी पर्याप्त बल के साथ
वहां पहुँच गई| इसके साथ ही आर०आर०एफ़० और आर०ए०एफ़
की अनेक गाड़ियाँ कोसी में हो रहे दंगे को शांत करने के लिए पहुँच
गईं| इस दौरान हमारे ग्रामीण भाइयों ने मुस्लिमो के करीब १
दर्जन दुकानों को आग के हवाले कर दिया| करीब सायं ८ बजे
पुलिस ने आकर पुरे नगर में कर्फ्यू लगा दिया| लेकिन कर्फ्यू लगने
के बाद भी मुस्लिमो का कहर बंद नहीं हुआ| अर्धरात्रि तक उनके
इलाके से गोलियों की आवाजें सुने देती रहीं | ---------------
-
इसके बाद 1 जून को दंगे वाले रात् को करीब ३ बजे कोसीकलां के
मस्जिद से
एक ऐलान सुनाई दिया की "सारे मुस्लिम तैयार रहें| अल्लाह
तुम्हारे साथ है |
ये तो बस एक शुरुवात भर है इंशा अल्लाह इस बार हम
सभी मुसलमान मिल कर इन हिन्दुओं का सफाया कर देंगे| यह बड़े
शबाब का काम है जो की अल्लाह ने तुमको दिया है| इन
काफिरों को मरोगे तो अल्लाह तुम्हे जन्नत बख्सेगा|" यह ऐलान
सुन सभी हिन्दू सहम गए और रात भर अपने छतों पर टहलते रहे|
खौफ के साये में रात गुजारने के बाद दुसरे दिन नगर की हालत
काफी बिगड़ी हुई दिखाई दे रही थी| हर तरफ मृत्यु
का सन्नाटा पसरा हुआ था| चारो तरफ बस आगजनी और
तबाही का ही मंजर था| मुस्लिम दंगाइयों ने चुन चुन कर ऐसे
गोदामों में आग लगाई थी जो हिन्दुओं की थीं और
करोडो का सामान रखा हुआ था उसमे| यदि पिछली शाम
को ग्रामीण लोग नहीं आये होते नगरीय लोगो की रक्षा हेतु
तो शायद नगरीय क्षेत्र हिन्दू विहीन हो चूका होता| ग्रामीण
बंधुओं का नगरिय लोग दिल से आभार प्रकट करते हैं|
------------
मथुरा जिले के एस०पी०, एस०एस०पी०, आइ०जी०, डी०आइ०जी०
और डी०एम० ही नहीं बल्कि आगरा और अलीगढ के सभी हेड
कांस्टेबल, एस०ओ०, एस०डी०एम०, पी०ए०सी०, आर०ए०एफ़,
आर०आर०एफ़० ने पुरे कोसीकलां को अपने कब्जे में ले लिया| दंगे के
दौरान ड्यूटी पर तैनात सभी प्रशासनिक अधिकारीयों के तबादले
कर दिए गए और जो लोग उनकी जगह पर आये वो आज़म खान
(शहरी विकास मंत्री), इमाम बुखारी (शाही इमाम
दिल्ली जामा मस्जिद) और मौलाना युसूफ मदानी के खास
अधिकारी थे| अब इन गुलाम अधिकारीयों के नेतृत्व में दंगे
की जाँच शुरू होने लगी | प्रशासन पर दबाव इस कदर था की ये
अधिकारी हिन्दुओं के घरों पर ही छापा मारने लगे| मुसलमानों के
मात्र कह भर देने से ही हिन्दुओं की धरपकड़ शुरू हो गई| दंगे वाले
दिन चाहे कोई हिन्दू कोसीकलां में हो या ना हो उन्हें
आरोपी दिखाया जाने लगा|
जिन हिन्दुओं का नुकसान हुआ वो भी पुलिस रिकॉर्ड में दंगाई
दिखाए गए|
अगले माह होने वाले नगर पालिका चुनाव में खड़े होने वाले
सभी हिन्दू
प्रत्याशियों को दंगाई दिखा कर उनके खिलाफ एफ़०आइ०आर
तैयार कर दिया गया| आस-पास के देहात के सभी हिन्दू ग्राम
प्रधानों एवं दबंग हिन्दुओं के
खिलाफ भी एफ़०आइ०आर दर्ज की गई |
---------------
यह प्रथम दृष्टया ही साजिस लग रही थी प्रशासन और सरकार
की हिन्दुओं
की ताकतें कमजोर करने की और उनके हाथ काट देने की| नई
महिला एस०एस०पी० एम० पदमजा, डी०एम० अलोक तिवारी और
आइ०जी० मियां जावेद अख्तर ये तीनो पुलस अधिकारी हिन्दू
विरोधी और मुस्लिम हितैषी हैं| हिन्दुओं के प्रति इनका व्यव्हार
सौतेला रहा है| अब तक हिन्दुओं में से १४
गिरफ्तारियां हो चुकी हैं और गिरफ्तारियां आज भी बदस्तूर
जारी हैं जो की रात के अँधेरे में 3 बजे तक में की जा रही हैं
वो भी जबरन हिन्दू घरों में घुस कर| और अभी तक में २०० हिन्दुओं
के खिलाफ एफ़०आइ०आर० दर्ज हो चूका है और
इतना ही नहीं करीब २००० अज्ञात हिन्दू भाइयों को दंगाई
दिखा उनके खिलाफ रिपोर्ट दर्ज किया गया है| और दिखने के लिए
आज़म खान (शहरी विकास मंत्री) के आगमन पर २-४
मुस्लिमों को पकड़ कर उनको राजसी ठाट-बाट के साथ जेल में
रखा गया है ताकि ज्यादा हो-हल्ला ना हो|
---------
गौरतलब हो की १ जून दंगे वाले दिन जब हिन्दू बंधुओं के घर और
दुकाने जलाई जा रही थीं और हिन्दू महिलाओं के साथ अभद्र और
नीच हरकते
की जा रही थी और मुस्लिम नुकसान पहुचाते हुए आगे बढ़ रहे थे
तब हिन्दुओं ने थाने पर खड़े आइ०जी० से मदद की गुहार लगाई
की सब जल रहा है और जलते हुए घरों में हमारी महिलाएं हैं लेकिन
आ०जी० के कानो को जैसे कुछ सुनाई नहीं दे रहा था और
ना ही उसकी आँखों को कुछ दिखाई दे रहा था |
पर जब ग्रामीण हिन्दू भाई अपने नगरीय हिन्दू भाइयों की मदद के
लिए आगे बढे तब ग्रामीण हिन्दू भाइयों पर इसी आइ०जी० ने
लाठी चार्ज कर उनको तितर बितर करने की कोशिस की| ऐसा ये
आइ०जी० इसलिए कर रहा था क्युकी ये खुद भी मुस्लिम है और
मुस्लिमों को मौका दे रहा था की तुम्हारे पास मौका है और मैं
खड़ा हूँ तुम्हारी रक्षा को जितना नुकसान पहुँचा सकते हो इन
हिन्दुओं को उतना नुकसान जल्दी से पहुँचा लो |
--------------- दंगे के ४-५ दिन बाद डी०एम० से
शांति बहाली के लिए कोसीकलां के व्यापारियों ने गुहार लगाई
तो डी०एम० का कहना था कि, "मेरा काम है नगर में
शांति व्यवस्था बनाये रखना| यह मेरा काम नहीं है कि आप हिन्दू
और मुसलमान आपस में राजीनामा करते हैं ये नहीं| वह आप
लोगों का काम है| आप लोग बाजार खोलो या ना खोलो इससे
मेरा कोई सरोकार नहीं है| तुम्हारे ऐसा करने से मेरी कोई तनख्वाह
नहीं कट रही है| अगर मुझे कोई उपद्रव करते मिल गया तो मैं पहले
उसे समझाऊंगा| यदि वो नहीं माना तो उसे डंडों से
समझाऊंगा और अगर तब भी नहीं समझा तो उसको मैं गोली से
उड़ा दूंगा|" नगर व्यापारियों ने प्रशासन के इस रवैये से क्षुब्ध
हो कर सीकलां में बाज़ार ना खोलने का निश्चय किया| १ जून शाम
से आज तक बाज़ार नहीं खुला है कोसीकलां में| और सड़कों पर
केवल सुरक्षा बल के जवान घूमते हुए दिखाई देते हैं| हम हिन्दुओं
के घरों में राशन इत्यादि जमा होता है| पर मुसलमान
जाती ऐसी होती है कि वो रोज कमाते हैं और रोज राशन खरीद कर
खाते हैं|
हिन्दुओं का अनुमान था कि हमारे बाजार ना खोलने से
मुसलमानों के हौसले पस्त हो जायेंगे और वो राजीनामा को मजबूर
हो जायेंगे| लेकिन हिन्दुओं
का अनुमान गलत साबित हुआ| जैसे ही कर्फ्यू में ढील हुई या सोच
समझ कर ढील दी गई मुसलमानों ने अपने औरतों और
बच्चों को अपने रिश्तेदारों के यहाँ भेज दिया| अब नगर में
उग्रवादी, कट्टरवादी और दंगाई किस्म के मुस्लिम रह गए हैं
जो कि संख्या में बहुत अधिक हैं | दंगा के तीसरे दिन से दिल्ली के
जामा मस्जिद कि तरफ से ट्रक भर कर राशन, सब्जियां, फल
इत्यादि आने शुरू हो गए और गौर करने वाली बात है कि प्रशासन
ने इसके लिए कोई रोक-टोक नहीं कि यहाँ तक कि इन
ट्रकों को जांचने का कार्य
भी नहीं किया गया| बल्कि इसके इतर प्रशासन ने मुस्लिम
बस्तियों में टैंकर भर कर पानी भिजवाना शुरू कर दिया और हिन्दू
मोहल्लों में पानी कि सप्प्लाई पर रोक लगा दिया गया| हिन्दुओं में
इस बात का काफी रोष व्याप्त हो गया क्यूंकि हिन्दुओं के घरों में
पानी कि किल्लत और एक वर्ग विशेष
को इतनी सुविधा वो भी प्रशासन के तरफ से|
हिन्दुओं के तरफ से हिन्दुओं और मुसलमानों में सुलह के लिए आज
तक ४ कोशिशें कि जा चुकी हैं| लेकिन अफ़सोस कि तीनो बार
मुसलमानों ने इन राजीनामे से
मना कर दिया| यही नहीं पूरा मेवात क्षेत्र जहाँ करीब १८ लाख
मेव-मुस्लिम रहते हैं उन्होंने मुस्लिमो कि हर तरह
कि सहायता करने का खुल्ला ऐलान कर दिया| इसमें हरियाणा के
नूंह, पुन्हाना आदि मेवात क्षेत्र काफी सक्रिय हैं|
वहीँ चौथे दौर कि संधि प्रयास में कोसीकलां के कांग्रेस समर्थित
आर एल डी के
सेकुलर विधायक ठाकुर तेजपाल सिंह ने एक बैठक
कि जिसका मुख्या मुद्दा था.........
------------
शांति बहाल करना पर इन्होने जो किया वो हिंदुत्व को शर्मसार
करने वाला था| ये विधायक महोदय मुसलमानों के इतने अत्याचार
के बावजूद हिन्दुओं को ही भाई चारे का पाठ पढ़ा रहे थे| शायद इन
विधायक महोदय को अपनी कुर्सी बचाने की ज्यादा चिंता थी| पर
कोसीकलां के हमारे हिन्दू भाइयों ने इन्हें टका सा जवाब दे
दिया की हमें नहीं चाहिए शांति और हम अब अपने तरीके से निपट
लेंगे इन
अधर्मी मुसलमानों से आप विधायक महोदय अपने मुस्लमान
भाइयों के साथ
मस्ती करो|
यह सर्वविदित है कि उत्तर प्रदेश कि सत्तारूढ़
समाजवादी पार्टी सरकार जिसके मुखिया मुलायम सिंह यादव हैं
वह हिन्दू विरोधी और मुसलमान परस्त पार्टी है| उसने इस बार
उत्तर प्रदेश में अपनी सरकार बनाने के चक्कर में
मुसलमानों को अपने मंत्रिमंडल में बड़े तौर पर तरजीह दी है।
--------------
आज़म खान जो कि शहरी विकास मंत्री है वो कट्टरवादी मुस्लिम
है, वह
कोसीकलां आया और उसने केवल मुसलमानों के हित कि ही बातें
करीं| कोसीकलां के मुसलमानों को उसने न्याय दिलाने और
प्रशासन से सहायता दिलाने का पूरा भरोसा दिया| आज़म खान ने
हिन्दुओं को भी सब कुछ ठीक करने का वादा किया पर उसके चेहरे
से साफ़ झलक रहा था कि जो भी वादा आज़म खान कर
रहा था हिन्दुओं से वो केवल उपरी मन से था| दरअसल आज़म खान
ने पर्दे के पीछे मुसलमानों कि पीठ थपथपाई और उनको अभयदान
दिया|
------------- आज़म खान के जाने के बाद उसी रात
कोसीकलां के रिहाइशी इलाके आर्यनगर के एक
बनिया व्यावसायी के घर और उसके निचे बनी दुकान
को किसी मुसलमान ने जला दिया जिस वजह से उस
व्यावसायी को लाखों का नुकसान हुआ| सुबह पुलिस आई और
जबरदस्ती उस पीड़ित व्यावसायी परिवार से लिखवा कर ले गई
कि ये आग शार्ट-सर्किट के चलते लगी थी| इस
घटना कि दूसरी रात को फिर किसी मुसलमान ने एक और
बनिया व्यावसायी के बाईपास स्थित दोना-पत्तल, मुन्जवान,
रस्सी और झाड़ू के गोदाम को आग के हवाले कर दिया |
----------------
इस बार भी पुलिस सुबह ही आई और पुलिस ने उस व्यापारी पर
प्रशासनिक दबाव देकर लिखवा लिया कि ये आग भी शार्ट-
सर्किट के चलते लगी है|
जबकि सत्यता यह थी कि इस गोदाम में ना तो कोई बिजली के
तार
कि फिटिंग थी और ना ही कोई बिजली का कनेक्सन था| नगर के
हिन्दुओं में रोष चरम पर है पर परेशानी ये है कि अगर विरोध
प्रदर्शन किया तो जैसे प्रशासन बराबर धमकी दे रहा है
कि हिन्दुओं पर रासुका लगा जेल में डाल दिया जायेगा|
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मुस्लिमों के जुल्म कि इन्तेहाँ तब हो गई जब उन्होंने अपने इलाके
में कर्फ्यू
लगा होने के बावजूद हमारी गौमाता कि हत्या कर कूड़े के ढेर में
फेंक दिया| यह एक करारा तमाचा था हम हिन्दुओं के मुँह पर और
चेतावनी थी यह मुसलमानों कि तरफ से कि देख
लो कितना भी कर्फ्यू हो पर हम तो ऐसा ही करेंगे| और तुम हिन्दू
अगर रोक सकते हो तो रोक कर दिखा दो| इस बार भी पुलिस बहुत
देर से पहुंची और बिना छानबीन किये कि ये गाय आई कहाँ से और
किसने इसे मारा पुलिस ने गाय का पोस्टमार्टम
करा गौमाता को धरती में गडवा दिया| और इतना पर ही नहीं रुके
पुलिस वाले उन्होंने वहां उपस्थित पत्रकारों को ये धमकी दी कि ये
किसी भी न्यूज़ में नहीं छापना चाहिए कि मुसलमानों के इलाके में
गाय का शव मिला है|
----------
कोसीकलां में भाजपा के राजनाथ सिंह जी भी आये|
उनको कोसीकलां में प्रवेश नहीं दिया गया| भारी मात्र में पुलिस
बल आ गया राजनाथ सिंह जी को रोकने के लिए| कोसीकलां के
बाईपास पर ही स्थित एक ढाबे पर रुक कर नगर के
पीड़ितों का दर्द सुन कर वो भी अपनी राजनैतिक रोटियां सेंकते हुए
दिखाई दिए| राजनाथ सिंह जी ने कहा कि, "मैं अखिलेश यादव से
बात
करूँगा कि वो हिन्दुओं के प्रति इतने रूखे क्यों हैं? यह एक
तरफ़ा कार्यवाही क्यों कर रहे हैं वो? पूरी भाजपा आपके साथ है|
हम जल्दी ही दिल्ली में हिन्दुओं के ऊपर हो रहे इस अत्याचार के
विरोध में धरना प्रदर्शन करेंगे|
हम कोसीकलां वासियों कि आवाज ऊपर तक पहुचाएंगे| आप लोग
घबराये नहीं|" और भी कई बाते इन्होने बोलीं पर
कोसीकलां वाशियों को जो राजनाथ सिंह जी और भाजपा से
जो आशा थी वो धूमिल होती प्रतीत हुईं|
----------
१३ जून को मुसलमान बस्तियों से यह सूचना आई कि आज
हिन्दुओं कि तेरहवीं तो हमने हिन्दुओं कि गौमाता कि हत्या करके
कर दी अब इनको दिखाना है कि इनका चालीसवां कैसा होता है|
इन मुट्ठी भर मुसलमानों के इतने उछालने का कारन एक ही है
कि हम हिन्दुओं का हाथ इस प्रशासन ने काट दिया है और
मुसलमानों ने अपनी ताकत इन तेरह दिनों में अच्छे से बढ़ा लिया|
क्यूंकि जिन ट्रको में उनके लिए दिल्ली के जामा मस्जिद से खाने
पिने का सामान आ रहा है और यहाँ का प्रशासन
बिना किसी रोकटोक के उसे मुस्लिम क्षेत्र तक जाने दे रहा है उन
ट्रकों में खाने-पिने के सामानों में छुपा कर घटक और स्वचालित
हथियार भेजे जा रहे हैं| (ज्ञात हो कि इमाम बनाने के समय और
उसके पहले से दिल्ली जामा मस्जिद के मौजूदा इमाम
बुखारी बोलते आये हैं कि मुसलमानों कि एक सशत्र सेना बनाने
कि और यहाँ तक कि बुखारी ने मुस्लिम लीग के तौर पर अपनी एक
मुस्लिम पार्टी बनाने के लिए साल २००० में कश्मीर के
अलगाववादी नेता गिलानी से भी मुलाकात करी थी)
--------------------- और इन खाना पीना लादे
ट्रकों का प्रवेश आजभी बदस्तूर जारी है कोसीकलां के मुस्लिम
बहुल इलाके में| अब इतने ही दिनों में मुसलमान
हिन्दुवों को खुली चेतावनी दे रहा है कि अब चाहे पूरा देहात आ
जाये हम हिन्दुओं का मुकाबला कम से कम पुरे दो महीने तक
मुकाबला कर सकते हैं| आखिर २ महीने तक लगातार हिन्दुओं से
मुकाबला करने कि बात ये मुसलमान अचानक से कैसे करने लगे|
१६ जून को पूर्व निश्चित समझौता सभा में मुसलमान नहीं आये|
उनका कहना था कि बाज़ार खोलना हिन्दुओं कि मज़बूरी है
उनकी नहीं|
हमको तो खाना अल्लाह अपने घर मस्जिदों से दे रहा है|
तुम हिन्दुओं कि गर्ज है तभी तो हम मुस्लिमों से
राजीनामा करना चाहते हो|
बाज़ार ना खोलने से हिन्दू बेहाल होगा ना कि मुसलमान
क्यूँकी मुसलमानों के घर खाने पिने कि सामानों से भरा हुआ है|
------------ विदित हो कि गत दो माह पूर्व
विधानसभा चुनाव होने के बाद कोसीकलां में
मुसलमानों कि बस्ती निकासे में तत्कालीन डी०एम० ने स्वयं
उपस्थित रह कर और मुस्लिम बस्ती में शिविर लगा कर पुरे २००
पितौलों के लाइसेंस मुस्लिमों को हाँथो-हाँथ आबंटित किये गए|
जबकि कानून किसी भी शास्त्र का लाइसेंस बनवाने
कि प्रक्रिया में करीब ३ माह से भी अधिक का समय लग जाता है|
लेकिन इन मुसलमानों के लिए यह कार्य एक दिन में ही कर
दिया गया| और ये कार्य तो एक जगह किया गया जो हमें
पता चला हो सकता है ऐसा कार्य उत्तर प्रदेश के हर मुस्लिम
इलाके में चोरी छिपे किया गया हो और इसके बारे में
किसी को पता ना चला हो| वैसे कोसीकलां के हिन्दुओं ने
भी अपनी सुरक्षा हेतु शास्त्रों के लाइसेंस आवंटित किये जाने
कि मांग कि जिसे प्रशासन ने ठन्डे बसते या कहें तो कूड़े दान में
डाल दिया| शतप्रतिशत मुसलमानों पर इस मेहरबानी के पीछे केवल
राजनैतिक समीकरण है| ---------
दिनांक १६ जून से कोसीकलां नगर से सभी लाइसेंस
बन्दुकधारि हिन्दुओं से
पुलिस उनके हथियार थाने में जमा करने में जीजान से जुट गई है|
पर वहीँ दूसरी तरफ मुसलमानों से उनके वैध या अवैध
हथियारों को पुलिस जब्त नहीं कर रही है|
प्रशासन के इस एक तरफ़ा रवैये को लेकर हिन्दुओं में एक खौफ के
साथ-साथ
गहरी साजिस का भी अंदेशा हो रहा है जिस कारन हिन्दू बंधुओं में
रोष व्याप्त है| आज मुसलमान हम हिन्दुओं के सर पर नाच रहे हैं|
हम हिन्दू यहाँ अपने
ही श्री कृष्ण कि नगरी में ऐसे रह रहे हैं जैसे दांतों के बिच
हमारी जिह्वा|
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हमारे इस हँसते खेलते वातावरण और घरौंदों को इन मुसलमानों ने
ऐसा बना दिया है जैसे कि हम किसी खंडहर में रह रहे हों| अपने
ही नगर और मोहल्ले में हमें ऐसे कैद किया गया है जैसे कि हम जेल
में रह रहे हों| सरकार और प्रशासन दोनों ही हम हिन्दुओं के खिलाफ
ही कार्यवाही करने को व्याकुल और अति-आतुर हैं|
सरकारी और प्रशासनिक दबाव के चलते कोसीकलां के इस भीषण
महासंग्राम और खुलेआम जलते घरौंदों को किसी भी टी०वि० चैनल
पर नहीं दिखाया जा रहा है और ना ही किसी समाचार पत्र में
इसको कोई स्थान मिल रहा है|
यही नहीं किसी भी हिंदूवादी नेता को नगर में प्रवेश करने से
रोका जा रहा है और उनको प्रवेश नहीं करने दिया जा रहा है|
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वैसे तो हिन्दू-मुस्लिम के दंगे आये समय में होते रहे हैं उत्तर
प्रदेश में, जैसे १९८० में हुवा मोरादाबाद का दंगा जिसने करीब
२००० लोगों कि प्राणों कि आहुति ले लिया था और उसमे भी कुछ
नहीं किया गया था क्युकी तब केंद्र और प्रदेश में कांग्रेस
कि सरकार थी| पर कोसीकलां में १ जून से चल रहे इस दंगे ने
गुजरात (गोधरा-२००२) में हुए दंगे कि याद दिला दिया कि १०
सालों बाद आज भी मीडिया और मोदी जी के विरोधी कैसे उस दंगे
को आये दिन उछालने कि कोशिस करते हैं पर वहीँ भारत देश के
बाकि के दुसरे भागों में हुए दंगो जिसमे भी गुजरात के तर्ज पर
ही मुसलमानों ने ही शुरुवात किया उसे बड़े जतन से
छिपाया जा रहा है ताकि किसी को सच्चाई का पता ना चले| इसे
कहते हैं हिन्दू विरोधी और मुस्लिम परस्ती|
हिन्दू भाइयों अभी भी समय है जाग जाओ और निश्चय
करो कि आप क्या चाहते हैं? केवल खुद कि शांति या सम्पूर्ण
शांति जिसमे आप के बच्चे दंगों का दंश ना झेले|
मुस्लिम परस्त मुलायम सिंह यादव या कांग्रेस्सियों जैसे
नेता जो हमेसा मुस्लिम परस्ती ही दिखाते रहते हैं को चुनना चाहते
हैं आप या किसी ऐसे राष्ट्रभक्त प्रधानमंत्री को बनते हुए
देखना चाहेंगे कि जो देश कि सोचे ? मोदी जी ने
तो दंगों कि जिम्मेदारी भी ली थी पर यहाँ तो चाहे वो उत्तर प्रदेश
के मुख्य मंत्री अखिलेश यादव हों या मुलायम सिंह यादव
या आज़म खान इन
लोगों ने जिम्मेदारी लेना तो दूर विपक्ष के हाई कोर्ट के
द्वारा गठित SIT से जाँच कि मांग
को भी ठुकरा दिया क्यूँकी इनकी सारी मुस्लिम परस्ती खुल कर
सभी के सामने आ जाती और इनकी दुकान बंद हो जाती...